Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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यहाँ गया और उसे प्रभावित कर कामदेव के मन्दिरमें ले आया । यहाँ कामदेवकी पूजा करते समय उसने कुमार जोवन्धरको प्राप्त करनेकी याचना की । कुमारने अपना वास्तविक रूप प्रकट किया और सुरमंजरीका कुमारके साथ विवाह सम्पन्न हो गया ।
सुरमञ्जरीसे विवाह होनेके उपरान्त कुमार अपने धर्ममाता-पिता सुनन्दा और गन्धोत्कटके यहाँ आया और परिवारसे मिलकर प्रसन्न हुआ । जीवन्धरने राज्यप्राप्तिके लिए उनसे सलाह को । पश्चात् यह धरणीतिलका नगरीके राजा अपने मामा गोविन्दराजके पास गया । मामा गोविन्दराजने राजपुरीको ससैन्य प्रस्थान किया और वहाँ नगर के बाहर मण्डप तैयारकर चन्द्रक यन्त्र बनवाकर घोषणा की कि जो व्यक्ति इस यन्त्रका भेदन करेगा, उसके साथ लक्ष्मणाका विवाह किया जायगा | अनेक राजकुमारोंने प्रयास किया, पर सभी असफल रहे । अन्त में जीवन्धरने यन्त्रका भेदन किया । गोविन्दराजने समस्त व्यक्तियोंको कुमार जीवन्धरका परिचय कराया। काष्टांगार जीवन्धरकुमारसे बहुत अप्रसन्न हुआ और उसने युद्ध के लिए कुमारको ललकारा। काष्ठांगार युद्धमें मारा गया । जीवन्धरकुमार राजा हो गया और उसने अपने धर्मभाई सेठपुत्र नन्दकुमारको युवराज नियत किया। कुमारका विवाह भी लक्ष्मणाके साथ सम्पन्न हो गया ।
जीवन्धरकुमार अपनी आठों स्त्रियों सहित जलक्रीडाके लिए गया । वहाँ एक वानर-वानरोके प्रेमकलहको देखकर उसके मन में विरक्ति हुई । तीर्थंकर महावीरके समवशरणका सम्पर्क प्राप्तकर जीवन्धरकुमारने मुनिदीक्षा धारण को' ।
महावीरको धर्मराभाने उसके जीवन में मंगल प्रभातका उदय किया । सम्यक् श्रद्धा, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्रकी उपलब्धि हुई । तीर्थंकरके निर्वाणपट्टपर जीवन्धरके नये हस्ताक्षर शोभित हो रहे थे। जीवन संग्राम में जूझनेकी जिस कलाका अनुभव जीवन्बरकुमारने किया था, उसीका क्रियात्मक प्रयोग तपस्याकालमें किया । अहिंसा, मैत्री, अपरिग्रह और सत्यकी उदात्त भावनाएँ उनके जीवनको उत्तरोत्तर निर्मल बनाती रहीं ।
हेमपुरीका यह समवशरण जोबन्धरकुमारके आत्मोथानका प्रबल सावन
बना ।
१. गद्यचिन्तामणि और जीवम्धर चम्पू - सम्पादक पं० पन्नालाल, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, उत्तरपुराणान्दनंत जीवन्धरचरित्र अध्याय ७५ पं० दौलत रामकृत 'जोवन्धरचरित; वोरवाणी, जयपुर, अंक ३-४, सन् १९६६.
२५८ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा