Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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बराकर नदी ऋजुकूलाका अपभ्रंश नहीं है और न क्षरियामें कोई भी ऐसा प्राचीन चिह्न ही उपलब्ध है, जिससे इसे तीर्थंकर महावीरका केवलज्ञानस्थान माना जा सके । बाबू कामताप्रसाद मां स्वयं इस स्थानक विषय में पूर्ण असन्दिग्ध नहीं है |
मुनि कल्याणविजयको तो स्वयं ही इस स्थानकी स्वस्थितिके विषय में आशंका है, पर इतना उन्हें निश्चय है कि यह स्थान चम्पाके निकट ही कहीं होना चाहिये । आवश्यकचूर्णिके अनुसार महावीर केवली होनेके पूर्व चम्पासे जम्भय, भिण्डिय, छम्माणी होते हुए मध्यमा पावा गये थे और मध्यमासे फिर जम्भय गाँव गये थे, जहाँ उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। इस वर्णनसे लगता है कि जम्मिय ग्राम और ऋजुपालिका नदी दोनों मध्यमाके रास्तेमें चम्पाके निकट ही कहीं होने चाहिये ।
जृम्भिक या जम्भिय ग्रामको अवस्थिति
वर्त्तमान विहारके भूगोलका अध्ययन करने तथा बिहारके कतिपय स्थानोंका पर्यटन करने पर अवगत होता है कि महावीरका कैवल्यप्राप्ति-स्थान वर्तमान मुंगेर से दक्षिणको ओर पचास मीलकी दूरीपर स्थित जमुई गाँव है । यह स्थान वर्तमान क्विल नदी के तटपर है । यही नदी ऋजुकूलाका अपभ्रंश है । क्विल स्टेशन से जमुई गाँव अठारह उन्नीस मीलकी दूरीपर अवस्थित हैं। जमुईसे चार मील उत्तरकी और क्षत्रिय कुण्ड और काकली नामक स्थान हैं। इन स्थानोंकी प्राचीनता आज भो प्रसिद्ध है । जमुईले तीन मील दक्षिण एनमेंगढ़ नामक एक प्राचीन टीला है। कर्निघमने इसे इन्द्रद्विमनपालका माना है । यहाँपर खुदाई में मिट्टीकी अनेक मुद्राएं प्राप्त हुई हैं । वर्षाकालमें अधिक पानी बरसनेपर यहाँ अपने आप ही अनेक मनोश मूर्तियाँ निकल आती हैं ।
जमुई और लिच्छवाड़ के बीच में महादेवसिमरिया गाँव है। यहाँ सरोवर के मध्य एक तीन-चार सौ वर्ष पुराना मन्दिर भी है। इस मन्दिरमें कुछ प्राचीन जैन प्रतिमाएं भी हैं। जमुईसे १५-१६ मीलपर लक्खीसराय है । यहाँ पर एक पर्वतश्रेणी है, जिसमें से प्रतिवर्ष अनेक बौद्ध और जैन मूर्तियां निकलती हैं । जमुई और राजगृहके बीच सिकन्दरा गाँव है तथा सिकन्दरा और लक्खीसरायके मध्य में एक आम्रवन है । कहा जाता है कि इस आम्रवन में भगवान महावोरने तपश्चरण किया था। आज भी यहाँके निकटवर्ती लोग इस वनको पावन मानकर इसके वृक्षोंकी पूजा करते हैं ।
१. लेखकने स्वयं जाकर देखा और जानकारी प्राप्त को ।
तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना : १७९