Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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बताया है कि यह लेख पहली शताब्दीका है और उसमें सम्राट् श्रेणिक तथा विपुलाचलका उल्लेख है। ____ झार. डी. बनर्जी ने बताया है कि सातवीं शताब्दीतक विपुलाचल और वैभारगिरिपर जैन स्तूप विद्यमान थे और गुप्तकालकी कई जैन मूर्तियां भी वहाँ हैं। सोनभद्र-गुफामें यद्यपि गुप्तकालीन लेख हैं, पर इस गुफाका निर्माण मौर्यकालके जैन राजाओंने किया था।
विपुलाचल पर्वतके तीन सामग्रेसे मसाले मन्दिर पारस्वासीय श्वेतवर्णकी मूर्ति विराजमान थी, जो गुप्तकालीन अनुमानित है।
द्वितीय रत्नगिरिपर महावीर स्वामीकी श्यामवर्ण-प्रतिमा एवं तृतीय उदयगिरिपर महावीर स्वामीकी खड्गासन-प्रतिमा निश्चयतः गुप्तकालीन है।
संक्षेपमें राजगृहके विपुलाचल पर्वतपर अन्तिम तीर्थंकर महावीरका प्रथम समवशरण लगा था। आज भी सोनभण्डार, मनियार, गौसमवन, सीताकुण्ड आदि स्थान जैन संस्कृतिसे सम्बद्ध हैं।
पुरातत्त्वके अनुसार राजगृह नगरको कुशात्मज वसुने गंगा और सोन नदीके संगमपर बसाया था। महाराज श्रेणिकने पंचपहाडीके मध्यमें नवीन राजगृह नगरको बसाया, जो विभूति और रमणीयतामें अद्वितीय था। जब श्रेणिकके पुत्र अजातशत्रने मगधकी राजधानी चम्पाको बनाया, उस समय किसी कारणवश अग्निदाहसे यह नष्ट हो गया। अतएव संक्षेपमें राजगहके निकट स्थित विपुलाचल पर्वत सीर्थकर महावीरका प्रथम देशनास्थल है। यहींसे धर्मतीर्थका उदय हुआ है। चतुर्विषसंघ-स्थापना
तीर्थंकर महावीरके उपदेशोंसे प्रभावित होकर अनेक राजा-महाराजा, राजकुमार, सार्थवाह, श्रेष्ठि, राजहिषियों, श्रेष्ठिपलियाँ एवं सामान्य नरनारीजन उनके शिष्य बने | इस सम्पूर्ण शिष्य समुदायको महावीरने पतुर्विधसंघमें विभक्त किया था—(१) मुनि, (२) आर्यिका, (३)श्रावक और (४)श्राविका। इस व्यवस्थाको दो भागोंमें भी विभक किया जा सकता है-(१) मुनि और (२) श्रावक ।
संन्यस्त व्यक्तियोंके लिये मुनि और आर्यिका अलग-अलग संघ बनाये गये थे। इसी प्रकार श्रावक-श्राविकाओंके लिये पृषक संघकी व्यवस्था की गयी पो । जो १. Journal of the Bihar and Orissa Rea. Soc. Vol. XXII (June,
1935), २. Indian Historical Quarterly, Vol. xxV, Pages 205-210. २०२ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा