Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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दास बन चुका है, क्या वह कभी आत्माका आराधक हो सकता है ? दाससे स्वामी बनना सहज नहीं है। मानवताके इतिहासमें मेघ कुमारका ऐसा उदाहरण है, जो जीवनको परिवर्तित करनेकी क्षमता रखता है।
श्रेणिकके साथ मेघकुमार भी महावीरके समवशरण में पहुँचा। उसने बड़े भक्तिभावसे प्रभुका चरण-वन्दन किया और अपने स्थानपर बैठकर तीथंकर महावीरका उपदेश श्रवण करने लगा। दिव्यध्वनि द्वारा सम्यक्त्वका विवेचन किया जा रहा था । आत्मोत्यानका साधन सम्यग्दर्शनको प्रतिपादित किया जा रहा था। प्रत्येक आत्मामें परमात्मज्योति विद्यमान है और प्रत्येक चेतनमें परमचेतन सामाहित है । चेतन और परमचेतन दो नहीं हैं, एक हैं । कर्माकरणके कारण यह आत्मा संसारमें परिभ्रमण कर रही है, पर जब यह संसारके बन्धनोंसे मुक्त हो जायगी, तो सिद्धावस्थाको प्राप्त कर लेगी तथा यही भिखारीसे भगवान् बन जायगी। ___ सम्यग्दर्शनके उक्त माहात्म्यको सुनकर मेधकुमार सोचने लगा---"कामना
ओंकी दासता ही सबसे बड़ी दासता है । इन्द्रिय-सुखोंके अधीन रहनेवाला व्यक्ति कभी निराकुल नही हो सकता है। मैंने अपनी इस युवावस्था में सभी प्रकारके इन्द्रिय-सुखोंको एकत्र किया है, पर मुझे कभी इन सुखोंसे तृप्ति प्राप्त नहीं हुई है। दिव्यध्वनिमें आत्मनिष्ठाका और संसारके विषयोंकी असारताकर सतर्क विवेचन किया गया है । अतएव में शुद्ध निरंजन निर्विकारी पद प्राप्त करनेके लिए प्रभुचरणों में दिगम्बर-दीक्षा ग्रहण कहेंगा । अब न तो मुझे राज्य करनेकी इच्छा है और न राजसी वैभवको भोगनेकी ही आकांक्षा है । यह जगत् मुझे धधकती चिताके समान सन्ताप-कारक प्रतीत हो रहा है । अतएव में माता-पिताकी अनुमति लेकर अब दिगम्बर-दीक्षा धारण करूंगा।"
समवशरणसे लौटने के पश्चात् भेषकुमारने माता-पितासे अनुरोध किया"मेरा मन संसारके विषयोंसे ऊब गया है और मुझे यह निश्चय हो गया है कि ये विषयचाहको दाह बढ़ानेवाले हैं। जैसे अग्निमें जितना अधिक ईधन डालते आइये, अग्नि उतनी ही अधिक प्रज्वलित होती जायगी । अग्निको शांति करनेके लिए जलकी आवश्यकता होती है। इसी प्रकार इन्द्रिय-विषयोंको शमन करनेके लिए त्याग और वैराग्यकी आवश्यकता है। संयम ही एक ऐसा साधन है, जो भोगेच्छाओंको नियन्त्रित कर सकता है। पूज्यवर ! आप दोनोंके उपकार मेरे ऊपर अधिक है। आपने मेरी समस्त सुख-सुविधाओंका ध्यान रखा है तथा मेरा भरण-पोषण सभी प्रकारसे किया है।
बद मेरी अन्तरंग इन्छा दिगम्बर-दीक्षा धारण करनेकी है। मेरी विल२१४ : तोयंकर महावीर और उनको आचार्य-परम्परा