Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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सीकी उत्पत्ति हुई | देव, विद्याधर और मनुष्य तिर्यञ्चोंके मनको प्रसन्न करनेवाला वह विपुलाचल प्रथम देशनाका स्थल होनेके कारण सभीसे वन्दनीय है ।
राजगृह नगर के पूर्व में चतुष्कोण ऋषिशेल, दक्षिणमें बेभार और नैऋत्य दिशामें विपुलाचल पर्वत है। ये दोनों वैभार और विपुलाचल पर्वत त्रिकोण माकृति के हैं। पश्चिम, वायव्य और उत्तर दिशामें फैला हुआ धनुषके आकारका छित्र नामक पर्वत है और ईशान दिशामें पाण्डुपर्वत है । इस प्रकार पांच पर्वतोंसे युक्त होनेके कारण यह पंचशैलपुर कहलाता है ।
षट्खण्डागमकी घवला - टीकामें उद्धृत पथोंके आधारपर पंघ-पहाड़ियोंके क्रमशः नाम ऋषिगिरि, वैभारगिरि, विपुलाचल, चन्द्राचल और पाण्डुगिरि आये हैं ।
हरिवंश पुराण में बताया गया है कि पहला पर्वत ऋषिगिरि है। यह पूर्व दिशाकी ओर चौकोर है। इसके चारों ओर झरने निकलते हैं। यह इन्द्रके दिग्गज के समान सभी दिशाओंको सुशोभित करता है ।
दूसरा पर्यंत दक्षिण दिशाकी ओर वैभारगिरि है । यह पर्वत त्रिकोणाकार है। वन और शरनोंसे युक्त है । इसका सौन्दर्य प्राकृतिक दृष्टिसे अपूर्व है ।
तीसरा दक्षिण - परिश्रम के मध्य त्रिकोणाकार विपुलाचल पर्वत है । इसी पर्वतके ऊपर लीकः महायक प्रथम उनवारण हुआ था और यहीं एकादश गणधरोंने भगवान्के पादमूल में दिगम्बर-दीक्षा ग्रहण की थी। विपुलाचल पर्वत अपनी प्राकृतिक शोभा और सौन्दर्यके लिये भी प्रसिद्ध है । १. एत्थावर पिगीए उत्यकालस्य परिमभागम् । तेलीसवास-मडमास - पण्णरस्रदिवस - सम्मि || वासस्स पढममासे साबणणामम्मि बहुलपरिवाए । अभिजीणक्वत्तम्मि व उष्पत्ती धम्मतित्यस्स ॥
-तिलोमसी १२६८-६९.
हम्मिस्से मसप्पिणीए पउत्प- समयस्य पछि भए । पोलीस - पास सेसे किंचि विसेसूणए संते ।। बासस्य पदम - मासे पढमे पक्खम्हि सावणे बहुले । पाविद - पुम्न दिवसे तिस्युप्पत्ती दु भिजिहि ॥
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- पट्खण्डागम, पथला टीका - समन्वित पु० १ ० ६२-६३. २. सुरक्षेयरमणहरणे गुणणामे पंचसेरूणपरस्मि । वित्तरुम्मि पव्वदवरे वीरभिणो अटुकतारो ॥ बतरस्सो गुम्बा रिसिसेको दाहिणाए बेमारी इरिदिविसाए बिचको दोन्नि तिकोगट्टिदायारा ॥
सोकर महावीर और उनकी देखना : १९९