Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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चमत्कार है ? क्रियाकाण्डी ब्राह्मण-परम्परानुयायी विद्वान् आश्चर्य चकित हो समवशरण-सभामें आने लगे। वायुभूति गौतम : अहंकार पूर
वायुभूति इन्द्रभूतिका छोटा भाई था। यह भी सोमिलायंके यशोत्सवमें ५०० छात्रोंके साथ मध्यमा पायामें आया हुआ था। जब इसे इन्द्रभूति और अग्निभूतिके दीक्षित होनेका समाचार प्राप्त हुआ तो इसका मन महावीरसे शास्त्रार्थ करनेके लिये फड़क उठा | इसने विचार किया-"मेरे दो माई, पता नहीं, किस प्रकार मायावीके इन्द्रजालमें फंस गये हैं। मुझे वैदिक मान्यताओंकी रक्षा करनी है। अतएव में शास्त्रार्थद्वारा महावीरको अवश्य पराजित करूंगा । भौतिक सुख, समृद्धि, यज्ञ-यागादि क्रियाकाण्ड, जातिवाद, बहुदेववाद आदिका विरोध करनेका सामर्थ्य किसमें है ? यह में मानता हूँ कि मेरे दोनों बड़े भाई मुझसे अधिक विद्वान और प्रतिभाशाली हैं, पर में भी अपने ज्ञानपर भरोसा करता हूं। मेरा विश्वास है कि देहासिरिक 'आस्मा' नामका कोई पदार्थ नहीं। चलता हूँ महावीरको सभा में और अपने तर्कोसे उन्हें परास्त कर देता हूं।"
इस प्रकार अहंकारसे पुलकित होता हुआ वायुभूति महावीरके समयशरणमें उपस्थित हुआ । जैसे ही वह मानस्तम्भके निकट आया, उसके अहंकार रूपी ओले गल गये और मानस-पक्ष उद्घाटित हो गये | गन्धकुटीमें विराजमान तीर्थंकर महावीरको सौम्य मुद्राको निनिमेष होकर वह देखता रहा । ज्ञानमद चूर होते ही उसका हृदय श्रद्धासे जगमगाने लगा। दम्भ और मिथ्याके हटते ही उसका हृदय परिवर्तित हो गया। मनके सारे विकल्प समाप्त हो गये । मन दिगम्बरी दीक्षाके लिये विवश करने लगा। __वायुभूतिने ४२ वर्षको अवस्थामें तीर्थकर महावीरके पादमूलमें दिगम्बरदीक्षा धारण की और तृतीय गणधरका पद प्राप्त किया । वायुभूतिको भी आत्मदर्शन हो गया और वह भी तीर्थकरके चरणोंका उपासक हो गया । शुचिंवत्त : हृदय-परिवर्तन
परिवेश व्यक्तिको कितना परिवर्तित कर देता है, यह शुचिदत्तके जीवनसे जाना जा सकता है। यह ब्रह्मवादी था और यज्ञ-यागादि द्वारा लौकिक अभ्युदयको प्राप्तिमें विश्वास करता था। जब उन्हें इस बातका शान हुआ कि तीर्थंकर महावीर समवशरणमें स्थित हैं और जनसमुदाय उनकी पीयूष-वाणीका पान करनेके लिये एकत्र है, तो वे भी अपनी इच्छाका संवरण न कर सके और तीर्थकर महावीरके दर्शनके लिये चल पड़े। शुचिदत्त ज्ञानी अध्यापक थे और ५००
तीर्थकर महावीर और उनकी देशना : १९१