Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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गणघरों में इन्द्रभूतिका प्रधान स्थान था । महावीरके समवशरणमें ग्यारह विद्वान गणधरनामसे विख्यात थे । इन सभीने महाबीरके दिव्य ज्ञान और तेजसे प्रभावित होकर दिगम्बर-दीक्षा ग्रहण की थी। अन्य गणधर : हत्य-परिवर्तन और बीमा
इन्द्रभूति गौतमके दिगम्बर-दीक्षा ग्रहण करनेका समाचार मगध-भूमिमें विद्युत्के समान व्याप्त हो गया। शिष्य-परिवार सहित इनके दीक्षित होनेसे अग्निभूति आदि विद्वानोंको महान् आश्चर्य हुआ और वे इन्द्रभूतिका समाचार मात करनेके लिए राजगृहके निकट विपुलापलपर पधारे । मग्निभूति ___अग्निभूति इन्द्रभूतिके मझले भाई थे। ये भी पांचसौ छात्रोंके विद्वान् अध्यापक थे और सोमिलार्यके यज्ञोत्सवमें अपने छात्रगणके साथ मध्यमा पावामें पधारे थे। वेद, उपनिषद् और कर्मकाण्डके महान ज्ञासा थे। इनके आकर्षक व्यक्तित्वका प्रभाव प्रत्येक व्यक्तिपर पड़ता था। इनका व्यवहार मधुर एवं विनयपूर्ण था। ____ इन्द्रभूतिकी दीक्षाके समाचारसे आश्चर्यचकित हो शास्त्रार्थ करनेको साथ लेकर महावीरके समवशरणमें आये। मानस्तम्भके दर्शनमासे इनके हृदयका व्यामोह दूर हो गया तथा मिथ्याखके विगलित होते ही सम्यक्त्वको प्रकाशकिरणें फूट पड़ी।
- वे महावीरको शांत मुखमुद्राका दर्शन करने में इतने तल्लीन हो गये कि उन्हें शरीरको भी सुध-बुध न रही । जिस प्रकार स्वर्ण अग्निमें तपकर निखर जाता है और समस्त मलिनता दूर हो जाती है, उसी प्रकार अग्निभूतिकी आत्मज्योति तीर्थंकर महावीरके सम्पर्कसे निखर गई और आत्म-शोधनके हेतु दीक्षित होनेको उनको कामना भी जागृत हो गयी।
सच्ची रुचि, सच्ची श्रद्धा, सच्चा प्लान और सच्चा आचरण भी उत्पन्न हो गया। अग्निभूतिके हृदय-परिवर्तनमें विलम्ब न हुआ। सच है कि काललब्धिके आनेपर आत्मोत्थानमें रुकावट नहीं आती। द्वैत-अद्वैस-सम्बन्धी उनकी शंकाएं स्वयं निराकृत हो गयीं। ___ अग्निभूतिने ४६ वर्षको अवस्थामें तीथ कर महावीरके चरणोंमें दिगम्बरदीक्षा ग्रहण की। इनके दीक्षित होनेका समाचार भी बात-की-बातमें सर्वत्र व्याप्त हो गया और विद्वानोंकी उत्सुकता जागृत हुई कि महावोरमें ऐसा कौन-सा १९० : तीषकर महावीर और उनका आचार्य-परम्परा