Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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साहसको तोड़ देते हैं। महावीर जैसे असाधारण साहसी ही इस प्रकारके उपसर्गों में सफल हो पाते हैं ।
महावीर जिन दिनों में साधना कर रहे थे, उन दिनों उज्जयिनी में बलिप्रथाका बड़ा जोर था | देवताओंकी पूजा में प्राय: पशुओंकी बलि दी जाती थी । महावीरने यह वर्षावास श्मशानमें ग्रहण किया था। इस श्मशान में भव नामक रुद्र निवास करता था । वह महावीरको देखते ही कोपसे जल उठा । यतः वह महावीर के अहिंसक विचारोंसे परिचित था । वह नहीं चाहता था कि वे अपना वर्षावास उज्जयिनी में करें। उसे भय था कि महावीरकी अहिंसा-साधना के प्रभाव से यहाँकी बलि प्रथा बन्द हो जायगी । अतएव उज्जयिनीसे महावीरको हटानेके लिये अगणित अत्याचार और उपसर्ग किये। वह चारों ओर से अग्नि जलाकर महावीरको यन्त्रणा देने लगा । कभी वह धूलि -मिट्टीकी वर्षा करता, कभी कंकड़-पत्थर गिराता और मूसलाधार जलवर्षा कर महावीरको भिगो देता और तीक्ष्ण तुफान चलाकर उनकी हड्डियों तक को शीत से जकड़ देता ।
भयावती और महावीरको डराता, धमकता । कमी सर्प बनकर उन्हें इंसता, तो कभी सिंह बनकर उन्हें खा जाना चाहता । इसप्रकार उस रुद्रने तीर्थंकर महावीरपर विभिन्न प्रकारके हिंसक उपसर्ग किये। पर महावीर हिमालयकी चट्टान के समान दृढ़ बने रहे और इन उपसर्गों से तनिक भी विचलित न हुए । उनके समत्वयोगकी साधना बढ़ती जा रही घी । विष अमृत बन रहा था। राग और द्वेष चूर-चूर होकर वीतरागतायें परिणत हो रहे थे । उन्हें अपनी सहायताके लिये किसी अन्यकी आवश्यकता नहीं थी । जब रुद्र थक गया और महावीरका कुछ न बिगाड़ सका, तो वह उनकी असाधारण वीरताकी प्रशंसा करता हुआ कह उठा कि ये तो महान् महावीर या अतिवीर हैं। इन्हें साधना - मार्ग से कोई भी विचलित नहीं कर सकता । इन्होंने अपने शरीरको संयमकी अग्नि में तपाया है ।
סי
साढ़े बारह वर्षोंके साधनाकाल के अधिकांश भागको निराहार रहकर व्यतीत किया । बारह वर्ष, छहमास और पन्द्रह् दिनके अपने साधना - कालमें महावीरने केवल ३५० दिन हो आहार ग्रहण किया ।
महावीरके तपश्चरणका विवरण निम्न प्रकार हैछहमासी अनशन तप
१ पक्षोपवास
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१
पाँचदिन कम छह्मासी तप चातुर्मासिक त्रैमासिक
१ भद्रप्रतिमा दो दिनपर उपवास ९ महाभद्रप्रतिमा चार दिनपर उपवास १ २ सर्वतोभद्रप्रतिमा दस दिनपर उपवास १
सीर्थंकर महावीर और उनकी देशना : १७५
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