Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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सलाश करने लगा। किसी भद्रपुरुषने बतलाया कि ये अपरिमित लक्षणवाले धर्मचक्रवर्ती तीर्थकर महावीर हैं। इनके राम लक्षणोंसे स्पष्ट है कि ये जनक्रान्तिके नेता, आत्मशोधक और मोक्षमार्गके नेता होंगे। ये नाना प्रकारले उपसर्ग और परीषहोंके विजेता, इन्द्रिय-निग्रही एवं जनकल्याण-कर्ता होंगे। सामान्य-चक्रवर्सीको अपेक्षा इनमें अपरिमित गुणाधिक्य है। यह महावीरका वन्दन-अर्चनकर अपने स्थानको चला गया ।
महावीर थूणाक-सन्निवेशसे विहार करते हुए नालन्दा पधारे। वर्षाकाल प्रारम्भ हो जानेके कारण उन्होंने वहीं चातुर्मास व्यतीत करनेका निश्चय किया। मालया : आत्मशोधन
नालन्दामें एक मासका उपवास स्वीकारकर महावीर ध्यानावस्थित हो गये। उनकी साधना मूक रूपमें चलने लगी। इसी समय वर्षवास व्यतीत करनेके उद्देश्यसे मंखली-पुत्र गोशालक वहाँ आया । इसकी महावीरसे भेंट हुई ।
उपवासकी अवधि समाप्त होनेपर महावीर चके लिए निकले और वहाँक विजय सेठके यहाँ उनका निरन्तराय बाहार हुमा । धानके प्रभावसे नालन्दामें गन्धोदककी वर्षा और पुष्पवृष्टि हुई, सुगन्धित वायु चलने लगी, देवोंने दुन्दुभिवादन किया और 'यह दान आश्चर्यकारी है' की ध्वनि की । नालन्दावासो इन पञ्च आश्चर्योको देखकर महावीरका जयनाद करने लगे । गोशालक भी बहुत प्रभावित हुआ और महावीरको चमत्कारी साघु समझ जनका शिष्यत्व स्वीकार करनेका उसने निश्चय किया। गोशालकका शिष्यत्व ___ जब धर्यासे महावीर लौट आये तो गोशालकने उनसे प्रार्थना की कि आप मुझे अपना शिष्य बना लीजिए। महावीरने कुछ भी उत्तर नहीं दिया और पुनः एक मासके उपवासका नियम ग्रहणकर ध्यानस्थ हो गये । उपवास समाप्तकर पारणाके हेतु नगरमें परिभ्रमण किया तथा आनन्द श्रावकके यहाँ उनकी पारणा हुई । अनन्तर वापस लौटकर उन्होंने पुनः एक मासका उपवास ग्रहण किया। उपवास समाप्त होनेपर वे पारणाके लिए चले और यहाँ सुनन्द श्रावकके घर उनकी पारणा सम्पन्न हुई।
महावीरने चतुर्थमासके आरम्भमें पुनः एकमासका उपवास करनेका संकल्प लिया।
चातुर्मास पूर्ण होते ही महावीरने नालन्दासे विहार किया, वे कोल्लागसन्निवेश पहुँचे । महावीरने जब नालन्दासे विहार किया, उस समय गोशालक
तीर्थकर महावीर और उनकी देशना : १४३