Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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प्रवाहित होती है, उसकी आत्मा निर्मल, निष्कलष और निर्विकार हो जाती है। देव भी उसके चरणों में नमस्कार कर अपनेको धन्य मानते हैं।" ____ गोशालक द्वारा इस प्रकार संयमको व्याख्या सुनकर और इसे अपने कपर आक्षेप मानकर वैश्यायनने क्रुद्ध होकर अपनी तेजोलेश्या गोपालकपर छोड़ी। पर तीर्थकर महावीरके अहिंसा-प्रभावसे गोशालककी रक्षा हो गयी और वैश्यायनको तेजोलेश्या व्यथं सिद्ध हुई।
गोशालक महावीरका साथ छोड़कर श्रावस्ती चला गया और वहाँ आजीवक मतको उपासिका कुम्हारिन हालाहलाकी भाण्डशालामें रहकर तेजोलेश्याकी साधना करने लगा। गोशालकने छह महीनोंकी निरन्तर साधनाके पश्चात् तेजःशक्ति प्राप्त की। इतना ही नहीं, उसने निमित्तशास्त्रका भी अध्ययन किया। अब वह सुख-दुःख, लाभ-हानि, जीवन-मरण आदि सभो बातोंको बतलाने में निपुण हो गया ।।
तेजःशक्ति और निमित्तझान जैसी प्रभावक शक्तियोंने गोशालकका महत्व बढ़ा दिया। उसके भक्त और अनुयायियों की संख्या प्रतिदिन बढ़ने लगी । साधारण भिक्षु गोशालक अब एक आचार्य बन गया और आजीवक-सम्प्रदायका प्रवर्तक कहलाने लगा। बालकोंका उपद्रव और समता
सिद्धार्थपुरसे तपस्वी महावीर वैशाली पधारे। एक दिन वैशाली के बाहर ये कायोत्सर्ग-ध्यानमें स्थित थे। उस समय नगरके बालक खेलते हुए वहां आये और महावीरको पिशाच या भूत समझकर सताने लगे। बालकोने महावीरके ऊपर तुले फेकें, गालियां दी और अनेक प्रकारसे कदर्षनाएं की, पर संयमाराधक महावीर अपनी साधनासे विचलित न हुए । उन्होंने इस उपसर्गको बड़ी समता और शान्तिके साथ सहत किया। बालकोंका उपद्रव प्रतिक्षण बढ़ता जाता था। वे धूल और मिट्टी भी उनके ऊपर फेंक रहे थे। इसी समय राजा सिद्धार्थका मित्र बनराज शंख भी अकस्मात् वहाँ पहुँच गया। उसने बालकोंके उपद्रवको रोका और स्वयं महावीरके चरणों में गिरकर उनसे क्षमायाचना की। कायोत्सर्ग-मुद्रा
वैशालोसे महावीरने वाणिज्य-ग्रामकी ओर प्रस्थान किया और वाणिज्यग्राम पहुँचकर प्रामके बाहर कायोत्सर्ग-मुद्रामें ध्यान आरम्भ किया। संयमकी
तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना : १५९