Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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युगकी पुकार __ महावीरका युग एक क्रान्तिकारी युग-द्रष्टा व्यक्तिको पुकार रहा था। चारों ओर "त्राहि माम्, त्राहि माम् को ध्वनि गूंज रही थी। यज्ञोंके धूम, पशुओंके करुण चीत्कार, नारीपर किये जानेवाले जोर-जुल्म एवं शूद्र और दलितोंपर किये गये अत्याचार जोर-जोरसे पुकार रहे थे कि कोई एक आध्यास्मिक क्रान्तिकारी महान प्रभावशाली व्यक्ति उपस्थित हो और संसारके अन्याय एवं अनीतिका विरोध करे । वास्तवमें इस समय युगका आह्वान न सुनना मानवताकी अवहेलना करना था। युग संयम और त्यागकी ओर टकटकी लगाये देख रहा था। अतः लोक-कल्याणके लिये दृढ़ संकल्प ग्रहण करना आवश्यक था। दुःखी संसार आँखें खोलकर किसी महान् व्यक्तिको प्रतीक्षा कर रहा था। चारों ओर अनेक तरहकी प्रतिक्रियाएं अभिव्यक्त हो रही थीं। प्रत्येक वर्ग और प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने ढंगसे अपनी-अपनी प्रतिक्रिया अभिव्यक्त कर रहा था । दीर्घकालसे चली आयी सार्वदेशिक विषमताको दूर करने के लिये महावीरकी खोज थी । जनकल्याणका मार्ग सभी नहीं प्राप्तकर सकते हैं। इसके प्राप्त करनेवाले तो कोई एकाध व्यक्ति ही होते हैं । अतः महावीरने वैराग्य ग्रहण करनेका संकल्प लिया। युगको पुकार उन्होंने सुनी और वे युगनिर्माणके कार्यमें प्रवृत्त हुए । मचल उठा त्रिशालाका मातृत्व
त्रिशलाने जब महावीरकी आध्यात्मिक जागृतिका संवाद सुना तो उनका मातृत्व मचल उठा। ममता उतावली हो उठी और उसके मनःप्राण शून्य हो गये। वह सोचने लगी-"राजसी वैभवमें पला मेरा लाइला बीहड़ वनपवंतोंमें किस प्रकार विचरण करेगा? ग्रीष्मके कड़े सन्तापको कैसे सहन करेगा? जिसने आजतक मखमलको छोड़कर नंगी भूमिपर चरण भी नहीं रखा, वह कंटकाकीर्ण भूमिमें किस प्रकार गमन करेगा ? शीत-ऋतु में सरितातटोंपर कैसे विचरण करेगा? जब मूसलाधार वर्षा होगी, तब वह किस प्रकार खुले आकाशमें साधना कर सकेगा ? कहाँ तो मेरे पुत्रकी सुकुमारता और कोमलता: और कहाँ कंकरीली कठोर घरती? तप्त शिलाखण्डोंपर बैठकर आत्मचिन्तन करना, क्या सुकुमार महावीरसे संभव होगा? हाथियोंकी चिंघाड़, सिंहोंकी गर्जना एवं सोंके उत्कट फत्कारोंको यह कैसे सहन कर सकेगा? मेरा हृदय आशंकासे दहल रहा है और मेरा रोम-रोम कॉप रहा है।"
माता त्रिशलाकी विचारधारा और तीवतासे आगे बढ़ी। वह चिन्तन करने लगो कि "जिसके सुकोमल.पगतलोंमें प्रकृतिने स्वयं महावर लगाया है।
तीर्थकर महावीर और उनकी देशना : १२९