Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
View full book text
________________
कहा-देवि ! विवाह करनेके पूर्व राजकुमार महावीरसे भी सहमति प्राप्त करना आवश्यक है। अतः विवाह-सम्बन्धी तैयारियां करनेके साथ महावीरसे महमति लेना अनुचित नहीं होगा।
नगरमें मंगलवाद्य बजने लगे। समस्त राजभवन मंगल-गीतोंसे मुखरित हो उठा। सभी ओर नृत्य-गीतके सुमधुर आयोजन होने लगे । महावीर इन सबसे अनभिन्न थे। उन्हें इसका पता भी नहीं था। आखिर एक दिन अवसर पाकर माता त्रिशलाने राजकुमार महावीरसे विवाहकी चर्चा को-"बेटा ! कलिंगनरेश जितशत्रुकी पुत्री यशोदा अत्यन्त रूपवती है। मैं उसे अपनी पुत्रवधू बनाना चाहती हूँ । इस सम्बन्धमें तुम्हारा क्या अभिमत है ?"
महावीर माताके प्यार-भरे वचनोंको सुनकर मौन रह गये। उन्होंने कुछ उत्तर न दिया। माता त्रिशला कुमारके सिरपर हाथ फेरती हुई, पुचकारती हुई और प्यार करती हुई पुनः बोली-"लाडले ! जल्दी बताओ, मैं तुम्हारी सहमति चाहती हूँ। अब मेरी यही अभिलाषा है | आज तक तुमने मेरी सभी इच्छाओंका आदर किया है । अब मुझे निराश नहीं करोगे।"
राजकुमार महावीरने अर्थपूर्ण दृष्टिसे मांकी ओर देखकर कहा-"मुझे दुःख है माँ, तुम्हारी यह इच्छा पूर्ण न हो सकेगी। मैं विवाह बन्धनमें फंसकर परिवारकी परिधिमें आबद्ध नहीं होना चाहता । आज सामाजिक जीवन में आर्थिक विषमता, वर्गभेद, घृणा, ग्लानि बढ़ती जा रही है । एक ओर सामान्य सुविधा-विहीन बह जनता है, जिसे दास या दलित वर्ग कहा जाता है और दूसरी ओर वह समाज है, जो ऐश्वर्य एवं प्रभुताके मदमें समाजकी इस बड़ी इकाईको अपनेसे पृथक् कर चुका है । यह प्रभुसत्ता-सम्पन्न वर्ग जनसामान्यका शोषण और दुरुपयोग भी करता है । आज दास-दासियोंके रूपमें नरनारियोंका क्रय-विक्रय हो रहा है। इस प्रकार सारा समाज अस्त-व्यस्त और विशृंखलित है। अतएव मैं विवाह बन्धनमें न बंधकर सत्यका अनुसन्धान करूंगा और जीवनकी श्रेष्ताओंका वरण करूँगा।"
राजमाता त्रिशला आश्चर्यचकित हो करुण स्वरमें बोल उठी-'पुत्र! विवाह न करोगे ? क्या मैं पौत्रके मुख-दर्शनसे वंचित रह जाऊंगी? माताका मातृत्व पौत्रकी प्राप्तिपर ही पूर्ण होता है।"
राजकुमार महावीर-"माँ ! मैंने लोक और आत्मकल्याणका महाप्रत लिया है 1 देख रही हो, आज चारों ओर अधर्म और अज्ञानका अन्धकार व्याप्त है। चारों बोरसे पापका धुओं निकल रहा है। बलि दिये जानेवाले पशुओंकी
तीर्थकर महावीर और उनकी देशमा : १२१