Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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(५) आत्मा और पुनर्जन्मका अभाव। (६) शरीरातिरिक्त अन्य कोई तत्व नहीं, फलतः शरीरमें ही आत्म-कल्पना ।
(७) शुभ और शुद्ध प्रवृत्तियोंका सर्वथा अभाव । अन्योन्यवाव-प्रवर्तक : प्रकद्ध कात्यायन
ये शीतोदकपरिहारी थे और उष्णोदकको ग्राह्य मानते थे । पक्रुद्ध वृक्षके नीचे पैदा होनेके कारण ये पक्रुद्ध या प्रक्रुद्ध कात्यायन कहलाये । प्रश्नोपनिषद्भ इन्हें ऋषि पिप्पलादिका समकालीन और ब्राह्मण बतलाया गया है । यद्यपि वहाँ इनका नाम कबन्धी कात्यायन बताया गया है, पर कबन्धी और प्रक्रुद्ध एक ही शारीरिक दोषके वाचक है। बौद्ध टीकाकारोंने इन्हें पक्रुद्धगोत्री होनेसे पक्रुद्ध माना है। बुद्धघोषने प्रकद्ध उनका व्यक्तिगत नाम और कात्यायन इनका गोत्र नाम कहा है। डॉ० फीयर इन्हें कध कहनेकी भी राय देते हैं। इन्होंने अन्योन्यवादी सिद्धान्तका प्रवर्तन किया है। बताया है कि सात पदार्थ किसीके किये, करवाये, बनाये या बनवाये हुए नहीं हैं । ये कूटस्थ और अचल हैं । न ये हिलते हैं और न परिवर्तित होते हैं। एक दूसरेको ये नहीं सताते । एक दूसरेको सुख-दुःख उत्पन्न करने में ये असमर्थ हैं । पृथ्वी, अप, तेज, वायु, सुखदुःख एवं जीव ये सात पदार्थ हैं। इन्हें नष्ट करनेवाला कोई नहीं है। तीक्षण अस्त्रसे भी कोई किसीका सिर नहीं काट सकता और न कोई किसीका प्राण ले सकता है 1 अस्त्र मारनेका केवल अर्थ है कि सात पदार्थोके बीचके अवकाशमें अस्त्रका प्रविष्ट होना।
इस प्रकार प्रकुद्ध कात्यायनने नित्य और कूटस्थ सात पदार्थोंका अस्तित्व स्वीकार किया और जनताको उक्त सातोंपदार्थोंके सम्मिलनसे सुस्त्र एवं विछोहसे दुःख प्राप्तिका सन्देश दिया। विक्षेपवाद-प्रवत्तक : संजय बेलष्टिपुत्र
संजय बेलट्ठिपुत्र नाम वैसा ही प्रतीत होता है, जैसा मक्खलि गोशालक । उस युगमें ऐसे नामोंकी परम्परा प्रचलित थी, जो माता या पिताके नामसे सम्बद्ध होती थी। आचार्य बुद्धत्रोषने इन्हें बेलटिका पुत्र माना है । कुछ विद्वान् सारिपुत्र और मौद्गलायनके पूर्व आचार्य संजय परित्राजकको ही संजय वेलट्ठिपुत्र मानते हैं। पर यह कल्पना यथार्थ नहीं हैं। यदि ऐसा होता तो बौद्ध-पिटकोंमें स्पष्ट उल्लेख भी मिलता, पर बौद्ध-पिटक इतना ही कहकर विराम लेते हैं कि सारिपुत्र और मौद्गलायन अपने गुरु संजय परिवाजकको छोड़कर बुद्धके धर्म
तीर्थकर महावीर और उनकी देशना : ७७