Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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स्वप्नसे प्राप्त होती है । देवि ! तुमने स्वप्नमें उछलते हुए सिंहका दर्शन किया है, जिसका फल गर्भस्थ बालकको अतुलपराक्रमी और शूर-वीर होना है । बालक अपनी अपार ऊर्जाको प्रादुर्भूत कर कर्म-शत्रुओंको नष्ट कर आत्मज्योति प्राप्त करेगा। उसके मनमें न कोई तनाव होगा, न कोई चिन्ता होगी और न वह संसारके प्रलोभनोंमें आसक्त रहेगा । जन्मसे ही वह आत्मवष्टा होगा। बड़ेबड़े सम्राट् और इन्द्र-धरणेन्द्र उसके चरणोंकी वन्दना करेंगे। श्रम, साधना और तपके माध्यमसे अपनो अनन्त कजाका विकास कर परमात्मपद प्रास करेगा । बालककी ऊर्जा पूर्णतया प्रस्फुटित होगी और उसके अध्यात्म-पराक्रमकी सभी लोग प्रशंसा करेंगे। मग्वार-पुष्पमाला : दिग्दिगन्त यशःसुरभि-विस्तार
मन्दार-पुष्पोंकी माला उत्सव, यश एवं प्रसिद्धिको सूचक है। इस स्वप्नदर्शन द्वारा बालकके यशस्वी होने एवं उसके कान्तिमान सुरभित सुस्फीत शरीरकी सूचना मिलती है । यह स्वप्न अनेक शुभ लक्षणोंका सूचक है । बालकका शरीर सुगन्धित एवं बनेक शुभ लक्षणोंसे युक्त होगा। यह इन्द्रियोंका निग्रह कर संयम और समताका आचरण करेगा। लक्ष्मी : इन्द्र-देवेन्द्रों द्वारा वन्दनीय
लक्ष्मी-दर्शनसे यह प्रकट होता है कि सुमेरु पर्वतपर सौधमं आदि इन्द्रोके द्वारा बालकका जन्माभिषेक सम्पन्न किया जायगा । राजा-महाराजाओके साथ इन्द्र, धरणेन्द्रादि उसके चरणोंकी पूजा करेंगे । तीर्थंकरप्रकृति के अतिशय पुण्यप्रभावके कारण जन्मसे छ: महीने पहलेसे ही कुबेरादि धन-सम्पत्तिको वृद्धि करेंगे। बालक अतिशय पुण्यके प्रभावसे सभीका लोकप्रिय होगा । वह केवलज्ञानादि लक्ष्मीका प्राप्तिकर्ता होकर पुनर्जन्म, आस्मा एवं षद्रव्योंके महत्त्वका प्रतिपादन करेगा । बालकके सौम्य दर्शनसे सिंह और गाय एकसाथ निवास करेंगे । चन्द्र : अमृत-वर्षण
स्वप्नमें चन्द्रमाका दर्शन अमृत-वर्षाका प्रतीक माना जाता है। गर्भस्थ बालककी वाणीसे कोटि-कोटि मानवोंके हृदयोंको मलिनता दूर होगी। उनके अमृत-स्पर्शसे सर्वत्र शीतलता व्याप्त हो जायगी। धर्मामतके वर्षपसे जगतका सन्ताप दूर होगा | धर्मामृत प्राणोंमें नव शक्तिका संचार करेगा। नश्वरको स्थायित्व प्रदान करेगा। इनके धर्मामृतसे संसारके क्लेश मिट जायेंगे, मलिनताके बादल छंट जायेंगे और पारस्परिक पृथकताओंको दूरी सिकुड़कर समाप्त हो जायगी। धर्मके सम्बन्धमें विकृत हुई भावनाका अन्त होगा। विपरीत
तीर्थकर महावीर और उनकी देशना : ९१