Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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देशाली नगरो चहारदीवारीसे घिरी हुई थी । यहाँ तीन प्रकारको दीवाले थों और प्रत्येक दोवाल एक दूसरीसे एक गव्यति (एक कोस) पर स्थित थी। तीनों स्थानोंपर द्वार थे, जो गोपुरों और अट्टालिकाओंसे युक्त थे । वैशालीके तीन भाग थे । प्रथम भागमें स्वर्णके गोपुरोंसे युक्त सात हजार भवन, मध्य भागमें रजतके गोपुरोंसे युक्त चौदह हजार भवन और अन्तिम भागमें ताम्रके गोपूरोंसे युक्त इक्सीस हजार भवन थे। इनमें उच्च, मध्यम और निम्नवर्गीक व्यक्ति अपने-अपने पदोंके अनुसार निवास करते थे | वैशालीके निवासियोंने यह नियम बना रखा था कि प्रथम भागमें जन्मी कन्याका विवाह प्रथम भागमें ही होगा, द्वितीय या तृतीय भागमें नहीं । नध्य भागमें जन्मी कन्याका विवाह प्रथम और द्वितीय भागोंमें होगा और अन्तिम भागमं जन्मी कन्याका तीनोंमेंसे किसी भी भागमें विवाह किया जा सकता था। वैशालीका यह संविधान था कि वेशालोमें जन्मी कन्याका विवाह किसी दूसरे स्थानमें नहीं किया जा सकता है।
चे तीनों भाग वैशाली, कुण्डपुर और वणियगाम (वाणिज्यग्राम) रहे होंगे, जो सम्पूर्ण नगरके दक्षिण-पूर्वी, उत्तर-पूर्वी और पश्चिमी अंशोंमें व्याप्त थे । कुण्डपुरके अनन्तर उत्तर-पूर्वी दिशामें कोल्लाग-सन्निवेश था, जिसमें ज्ञातकुलके क्षत्रिय निवास करते थे। वैशालीको समृद्धि और परम्पराके अध्ययनसे ज्ञात होता है कि वैशाली कुण्डग्राम और वाणिज्यग्राममें ब्राह्मण, क्षत्रिय और वश्य निवास करते होंगे । निश्चयतः उन दिनोंमें वैशाली बहुत हो समृद्ध और सुव्यवस्थित नगरी थी । इसमें सात हजार सात सौ सतहत्तर प्रासाद, इतने ही कटागार, आराम और पुष्करिणियाँ थों। यह नगरी अपनी रमणीयता, वितानपुक्क आँगन, द्वार, तोरण, गवाक्ष और होसे समलंकृत एवं पुष्पवाटिकाओं और कूसूमित वनोंसे युक्त थी । वैशालोमें सभी प्रकारकी फसलें उत्पन्न होती थीं। वहाँ के निवासी शांति और संतोषका जीवन व्यतीत करते थे । राष्ट्र धन-सम्पन्न और देवपुर-जैसा रम्य था। उपनगर : कुण्डग्राम
वैशालीका कुण्डग्राम या क्षत्रियकुण्ड बहुत ही प्रसिद्ध और रमणीक था ।यह कुण्डपुर या कुण्डग्राम दो भागोंमें विभक्त था-क्षत्रियकुण्ड और ब्राह्मणकुण्ड । क्षत्रियकुण्डसन्निवेश ब्राह्मण-कुण्डपुरसन्निवेशसे उत्तर स्थित था।क्षत्रियकुण्डग्राममें ज्ञातृवंशी क्षत्रियोंका निवास था। बताया जाता है कि गंडकी नदीके पश्चिम तटपर ये दोनों ही कुण्डपुर स्थित थे और एक-दूसरेके पूर्व-पश्चिम पड़ते थे। कुण्डपुरका वर्णन महाकवि असगने अपने 'वर्द्धमानधरित' में किया है। यह नगर सभी प्रकारको वस्तुओंसे युक्त परकोटा, खातिका, पापिका एवं वाटिकायों८२ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा