Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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१. चार दांतों वाला उन्नत गज,
२. दवेत वर्णका उन्नत स्कंधवाला वृषभ, ३. उछलता हुआ सिंह,
४. कमलसिंहासनपर स्थित लक्ष्मी,
५. सुगन्धित भव्य मन्दारपुष्पोंकी दो मालाएं, ६. नक्षत्रों से परिवेष्ठित चन्द्र,
७. उदयाचलर अंगड़ाइ भरता हुआ सूर्य, ८. स्वच्छ जल परिपूरित दो स्वर्णकलश, ९. जलाशय में क्रीड़ारत मत्स्यद्वय, १०. स्वच्छ जलसे भरपूर जलाशय, ११. गम्भीर घोष करता हुआ सागर, १२. मणिजटित सिहासन,
१३. रत्नोंसे प्रकाशित देव - विमान,
१४. धरणेन्द्रका गगनचुम्बी विशालभवन --- नाग- विमान, १५. रत्नोंकी विशालराशि,
१६. निर्धूम अग्नि
स्वप्न बेलाके समय हस्त नक्षत्र था, जो मंगल और विभूतिका प्रतीक है । स्वप्नदर्शन के अनन्तर त्रिशलाकी निद्रा भंग हुई और वह सोचने लगी- आज कभी भी इस प्रकारके स्वप्न दिखलायी ही नहीं पड़े। क्या कारण है कि आज तक मेरे मनमें हर्ष और उल्लास इतना अधिक बढ़ रहा है ? जिस बातकी कल्पना मैंने कभी जागृत अवस्था में नहीं की, वह स्वप्न में क्यों आई ? कम्बद्ध प्राणी की क्रियाएं भूत और भावी जीवनको सूचना देती हैं। स्वप्नका अंतरंग कारण ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय और अन्त रायके क्षयोपशमके साथ मोहनीयका उदय है। जिस व्यक्ति के जितना अधिक इन कर्मोका क्षयोपशम रहता है, उस व्यक्तिके स्वप्नोंका फल भी उतना ही अधिक सत्य निकलता है। तीव्र कमवा व्यक्तियोंके स्वप्न निरर्थक एवं सारहीन होते हैं । इसका मुख्य कारण यही है कि सुषुप्तावस्थामें भी आत्मा सो जागृत रहती है, केवल इन्द्रियों और मनकी शक्ति विश्राम करनेके लिये सुषुप्त सी हो जाती है।
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जिस व्यक्तिके ज्ञानावरणादि कर्मोंका क्षयोपशम है, उसके क्षयोपशमजन्य इन्द्रिय और मन संबन्धी चेतनता और ज्ञानावस्था अधिक रहती है । अतएव ज्ञानकी मात्राको उज्ज्वलतासे निद्रित अवस्थामें जो कुछ दिखलायी पड़ता है उसका सम्बन्ध हमारे भूत, वर्तमान और भायी जीवनसे है। पौराणिक अनेक ८८ : तीर्थंकर महावीर और उनकी माचार्य-परम्परा