Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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साथ एवं छठी कन्या सुज्येष्ठाका विवाह अवन्तिनरेश चण्डप्रद्योतके साथ हुआ था। सातवीं कन्या चन्दना अविवाहित रह गयी थी, जिसने दीक्षा ग्रहण की।
चेटक के प्रभावकारी व्यक्तित्वके कारण अन्य देशोंके नरेश भी उनका सम्मान करते थे। चम्पाके राजा दधिवाहन, कलिंगनरेश जितशत्रु, श्रावस्तीनरेश प्रसेनजित, मथुराके राजा उदितोदय, हेमांगदनरेश जीवंचर, पोदनपुरनरेश विद्रराज, पोलापुरनरेश विजयसेन, पांचालनरेश जय एवं हस्तिनापुरनरेश चेटकके मित्र राजाओंमें परिगणित थे ।
महाराज चेटकके इन संबंधोंके कारण वैशालोको प्रतिष्ठा अविक बढ़ गयी थी और वैशालीके उपनगर कुण्डपुरमें तीर्थंकर महावीरका जन्म होनेसे वैशालीको भूमि कृतार्थ हो गयी । वहाँका अणु-अणु पावन हो पाप और अनाचारके बोझको दूर करनेके लिये कृतसंकल्प था । वैशालीको प्रजा सुखी और समृद्ध तो थी ही, यहां न कोई शोषणकर्त्ता था और न कोई शोषक हो था । सभी एक- दूसरेपर विश्वास और प्रेम रखते थे। सरलता, शिष्टता, निश्छलता, सादगी और सत्यका पूर्ण साम्राज्य था । तीर्थंकर पार्श्वनाथ की परम्पराने लोकमानसको जनोद्धारके लिये कृतसंकल्प कर दिया था। प्राचीकी भौति वैशालीको प्रत्येक दिशा ज्योतिसंती हो रही थी ।
महाराज चेटक अपनी कन्या त्रिशलाका पाणिग्रहण सिद्धार्थके साथ सम्पन्न कर सुख और शांतिकी साँस ले रहे थे । त्रिशला स्वभावसे कोमल, | वाणीसे मृदु और हृदयसे उदार थी । उसके व्यक्तित्वको मधुर छाप प्रत्येक व्यक्तिके अंतस्तलपर पड़ती थी। जो भी उसे देखता सहज ही उसका भक्त बन जाता । प्रिय और मधुर वचन बोलनेके कारण तथा छोटे-बड़े सभीके प्रति प्रिय व्यवहार करने के कारण उसका अपर नाम प्रियकारिणी भी था । प्रिय करना और प्रिय बोलना त्रिशलाका सहज संस्कार था । आचार्य जिनसेनने प्रियकारिणी या त्रिशलाके गुणोंका चित्रण करते हुए उसे स्नेह-पयस्विती कहा है । अपने उदात्त गुणोंके कारण त्रिशलाने महाराज सिद्धार्थके मनको वशीभूत कर लिया था । कुण्डपुरके नैसर्गिक सौन्दर्य में प्रियकारिणी की सत्ताने कई गुनी वृद्धि कर दी थी। धर्मवत्सल महाराज सिद्धार्थं त्रिशलाको प्राप्तकर बड़भागी बन गये थे । बैशालीका १. उच्च कुलादिसम्भूता सहजस्नेहवाहिनी ।
महिती श्री समुद्रस्य तस्यासीत् प्रियकारिणी ॥ तटकराजस्य यास्ताः सप्तशरीरजाः । सिस्नेहाकुलं बस्तास्वाद्या प्रियकारिणी ॥
- हरिवंश पुराण २०१६-१७.
तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना ८५