Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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भी उन्होंने निदान सहित मरण किया । फलत: महावीरके जीव विश्वनन्दीने महाशुक्र स्वर्ग में देवपर्याय प्राप्त की। इधर विशाखभूतिका जीव भी सपश्चरणके प्रभावसे उसी स्वर्ग में देव हुआ। ये दोनों ही अगणित वर्ष तक मनोनुकूल सुखोंका उपभोग करते रहे। विश्वनन्दीके चाचा विशाखभूतिका जीव सुरम्पदेशके पोदनपुर नगरमें प्रजापति महाराजको जयावती रानीके गर्भसे विजयभूति नामका पुत्र हुआ । विश्वनन्दोका जीव भी वहाँसे च्युत हो इन्हीं प्रजापति महाराजको दूसरी रानी मगावतीके गर्भसे त्रिपृष्ठ नामका पुत्र हुआ। यह शिवसे ही शरवीर और तेजस्वी था। उसके शरीरकी कांतिने चन्द्रमाकी ज्योत्सनाको भी पराजित कर दिया था। इसप्रकारके तेजस्वी कुमारको देखकर सभी परिजन
और पुरजन आनन्दित थे। प्रजापति ने अपने दोनों पुत्रों के पालन-पोषण और शिक्षा-दीक्षाका उत्तम प्रबन्ध किया । कुमार त्रिपृष्ट अल्पकाल में ही युद्धविद्यामें पारंगत हो गया। त्रिपृष्ठ-पर्याय : चक्रव्यूह
विश्वनन्दीके भव में महावीरके जीवने प्रतिशोधका निदान बांधा था। इस निदानका फल उन्हें भी संसार-परिभ्रमणके रूपमें प्राप्त होना अनिवार्य था। तपस्या आत्माको कंचन बनाती है । वह क्लेश-कर्मोंको भस्मकर शुद्ध करती है, पर जब इसी तपस्या में निदानका संयोग हो जाता है, तो यह आत्मामें ऐसा मोड़ उत्पन्न करती है, जिससे लक्ष्य च्युत होने में विलम्ब नहीं होता। त्रिपष्ठको वीरता और पुरुषार्थके साथ समस्त ऐहिक भोग उपलब्ध हुए। वह अनेक प्रकारसे संसारके भोगोंका सेवन करने लगा।
इधर विशाखनन्दीका जीव पापकर्मके फलस्वरूप अनेक दुर्गतियों में परिभ्रमण करता हुआ विजयाद्ध पर्वतकी उत्तरश्रेणीके अलकापुर नगरमें मयरग्रीव नामक विद्याधर राजाकी नीलाञ्जना नामक पत्नीके गर्भसे अश्वग्रीव नामका पुत्र उत्पन्न हुआ । अश्वग्रीव भी पूर्वजन्मोंमें कभी अर्जित किये गये शुभ पुण्योदबसे विभिन्न प्रकारके सुखभोगोंको प्राप्त हुआ। अश्वग्रोव शक्तिशाली और पुरुषार्थी था । इसने भी अस्त्र-शस्त्रकलामें निपुणता प्राप्त की। ___ विजयाद्ध पर्वतकी दक्षिणश्रेणीमें रथनूपुरचक्रवाल नामक नगरमें ज्वलन. जटी नामका विद्याधर राजा शासन करता था। यह तीन विद्याओंका स्वामी था । उसने अपनी शक्तिसे दक्षिणश्रेणीके समस्त विद्याधर राजाओंको अपने वशमें कर लिया था। इसके बल पौरुषके समक्ष बड़े-बड़े सामन्त और शूर-वीर नतमस्तक रहते थे। इस राजाको पत्नीका नाम वायुवेगा था, जो द्युतिलक ३८ : तीर्थंकर महावीर और उनको आचार्य-परम्परा