Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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विक्रय और उसके व्यवहारोंका नियम निर्धारण करते थे । व्यापारमार्ग बनकान्तार, जलीय-प्रदेश और अरण्योंमें होते हुए जाते थे | माल पशु और गाड़ियोपर ढोया जाता था । नदीका यातायात नावोंसे होता था, जिसका तर्पण्य दूरी और स्थानीय दरके हिसाबसे तय किया जाता था। समुद्री यातायातके लिये दर निश्चित नहीं था। नौसंचार-सम्बन्धी असावधानीके कारण होनेवाली क्षतिको पूर्ति नौ या प्रवहणके स्वामीको करनी पड़ती थी ! इस अध्ययनसे ऐसा भी ज्ञात होता है कि उस समय बीमेका भो प्रबन्ध प्रचलित था ।
निर्यात वाणिज्यका नियमन राज्यकी ओरसे होता था। जिस मालमें राजाका एकाधिकार था या जिसका निर्गम वर्जित था, उसका निर्यात करनेवाले व्यापारीको सम्पत्ति जब्त कर ली जातीर्थ।। प्राच्य देशमें हाथी, काश्मीरमें केसर, रेशम एवं ऊनी वस्त्र, पश्चिमी देशोंमें अश्व, दक्षिणमें रत्न एवं मोती आदिका निर्यात सीमित था ।
वाणिज्यपर शुल्क भी लिया जाता था । क्रय-विक्रयके भाव माल लाने, ले जानेको दूरी, मुख्य और गोण मूल्य एवं मार्ग में शंकास्थलोंका विचार कर शुल्काध्यक्ष शुल्कोंको दर निश्चित करते थे। राज्यकी ओरसे नदियोंपर उतराईके घाटोंका भी प्रबन्ध था। यहाँ शुल्ककी दर निश्चित थी। महावीरके समयमें स्वर्ण, रजत एवं ताम्रकी मुद्राए भी प्रचलित थीं। पण, अद्धपण, पादपण, अष्टभागपण, रोप्यमाषक, धरण आदि सिक्के प्रचलित थे। स्वर्ण और रजतके निष्कोंका भी व्यवहार होता था। इस प्रकार महावीरके समयका भारत आर्थिक दष्टिसे पूर्ण समृद्ध था । अन्न और वस्त्रकी कमी उस समय किसीके समक्ष नहीं थी। ग्राम और नगर अपनी-अपनी आवश्यकताओंकी पूर्ति के लिये समर्थ थे। कृषिसे अन्न, करघेसे वस्त्र, शिल्पियोंसे विलास-सामग्री एवं पशुओंसे दुग्ध और वाहनके कार्य सम्पन्न किये जाते थे । देशका व्यापार मिश्र, यूनान, चीन, फारस एवं सिंहल तक व्याप्त था | आमोद-प्रमोदकी सामग्रियोंका भी बाहुल्य था । कूप, वापी, स्नानागार, सभागृह, नाटयशाला आदिकी भी कमी नहीं थी। सामाजिक स्थिति
महावीरके समयका समाज वैदिककालीन समाजकी अपेक्षा टूट रहा था । समाजमें शिक्षाका प्रचार तो अवश्य था, पर उसकी सीमाएँ निश्चित थीं । स्त्री
और शूद्रोंको वेदाध्ययनके अधिकारसे वंचित किया गया था । ऋग्वेदकालमें जिस जातिप्रथाका प्रचार हुआ वह सूत्रकालमें आकर अधिक सुदृढ़ हो गयी। ऋग्वेदमें अन्तर्जातीय विवाहका निषेध केवल भाई-बहन या पिता-पुरीके व्य•
तीर्थकर महावीर मोर सनकी देशमा : १९