Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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पांचालनगरमें अवस्थित रहती थी। पांचाल देश कोशल और वत्सके पश्चिम तमा चेदिके उत्तर था । कुरु इसके पश्चिम और व्रजभूमिके उत्तर था । ये दोनों प्राचीन जनपद थे, पर इनका महत्त्व घट रहा था। पांचाल जनपदकी दो शाखाएँ थीं :-उत्तरी और दक्षिणी । उत्तरी पांचालको राजधानी अहिच्छत्र और दक्षिणी पांचालको काम्पिल्य थी। आरम्भमें यहाँ राजतन्त्र था, परन्तु बादमें यहाँ गणतन्त्रको स्थापना हुई। ___ मत्स्य-आधुनिक अलवर, जयपुर और भरतपुर राज्योंकी भूमिपर यह स्थित था। इसकी राजधानी विराटनगरी थी। मत्स्य पहले तो चेदियोंके अधीन था, पर कुछ समय बाद मगधके अधीन हो गया।
शूरसेन-कुरुके दक्षिण और चेदिके पश्चिमोत्तर यमुनाके दाहिने शूरसेनोंका राज्य था। इस जनपदको मथुरा राजधानी थी। पहले यहां गणतन्त्र था, बादमें यहाँ राजतन्त्र हुआ।
वश्मक- यह राज्य गोदावरीके तटपर स्थित था। इसकी राजधानी पाटेली (पोतन) थी। इस राज्यके राजा इक्ष्वाकुवंशके थे। इनका अवन्तीके साथ निरन्तर संघर्ष चलता रहता था । शनैः शनैः यह राज्य अवन्तीके अधीन हो गया। ___ अवन्ती-आधुनिक मालवा प्रान्त ही प्राचीन अबन्तीका राज्य है । उत्तरी अवन्तीकी राजधानी उज्जयिनी और दक्षिणी अवन्तीकी राजधानी माहिष्मती थी । प्राचीनकालमें यहाँ हैहय वंशका शासन था।
गान्धार-यह आधुनिक अफगानिस्तानका पूर्वी भाग था। यह पश्चिमी पंजाब और काश्मीर तक विस्तृत था। इसकी राजधानी तक्षशिला थी। अवन्ती और गान्धारके बीच कई बार युद्ध हुए थे। मगधराज बिम्बसारका भी इस राज्यके साथ मित्रताका सम्बन्ध था। तक्षशिलामें एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय था, जिसके कारण गान्धार विख्यात था ।
कम्बोज-गान्धार काश्मीरके उत्तर आधुनिक पामीरका पठार तथा उसके पश्चिम वरखूशाम प्रदेश, कम्बोज महाजनपद कहलाता था। हाटक या राजपुर इस राज्यको राजधानी थी।
इन सोलह जनपदोंके अतिरिक्त भी उस समय भारतवर्ष में कई छोटे-छोटे राष्ट्र थे । गान्धार-कुरु तथा मरस्यके बीच केकय, मद्रक, त्रिगतं, यौधेय आदि तथा उनके पश्चिम और दक्षिण-पश्चिममें सिन्धु, शिवि, अम्बष्ठ, सौवीर आदि राष्ट्र थे । सोलह महाजनपदोंमेंसे गान्धार-कम्बोजका युगल तो एक ओर था; किन्तु अवशिष्ट साप्त युगलके प्रदेश लगातार एक दूसरेसे लगे हुए थे। इनकी पूर्वी सीमा अंग और कलिंग तथा दक्षिणी सीमा अश्मक थी । इस युगके भारतके
तीर्थकर महावीर और उनकी देशना : ६५