Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
View full book text
________________
नगरके राजा विद्याधर और सुभद्रा नामक रानीकी पुत्री थी। वायुवेगा रूपमें रति और गुणोंमें लक्ष्मी थी। एकप्रकारसे रति, लक्ष्मी और सरस्वती इन तीनोंका समन्वय उसमें विद्यमान था । इस दम्पतिकी दो सन्तानें हुई-अर्ककीर्ति नामक पुत्र और स्वयंप्रभा नामक पुत्री।
स्वयंप्रभाके शरीरसे लावण्यकी कोति निस्सृत होती थी । उसने अपने रूपसे तिलोत्तमा और गुणोंसे सरस्वतीको तिरस्कृत कर दिया था। उसमें सभी स्त्रियोचित सुलक्षण विद्यमान थे | बिना आभूषणोंके हो उसका अनिन्द्य लावण्य पुरुषमात्रके लिये आकर्षणका विषय था। स्वयंप्रभा शनैः शनैः किशोरावस्थाको पारकर मौवनमें प्रविष्ट हुई। पिता ज्वलनजटीके लिये कन्याको युवती देख विवाह करनेको चिन्ता हुई । उसने निमितज्ञ अपने पुरोहितको बुलाकर पूछा"कन्या स्वयंप्रभाका विवाह किसके साथ होगा और कब होगा ? निमित्तशास्त्रके पन्ने उलटकर पुरोहितने उत्तर दिया--'यह नारायण त्रिपृष्ठको महादेवो होगी और आप भी उसके द्वारा दिये हुए विद्याधरोंके चक्रवर्तीपदको प्राप्त करेंगे।"
ज्वलनजटीने पुरोहितके द्वारा पोदनपुर और पोदनपुरनरेश प्रजापति, त्रिपृष्ठ आदिकी जानकारी प्राप्तकर अत्यन्त विश्वस्त शास्त्रज्ञ और राजभक्त इन्द्र नामक मंत्रोको पत्र एवं बहुमूल्य पदार्थ भेंटके निमित्त देकर पोदनपुर भेजा। इन्द्र अपने विद्याबलसे विमानद्वारा पोदनपुर पहुँचा । पोदनपुरनरेश महाराज प्रजापति उस समय पुष्पकरण्डक नामक उद्यानमें क्रीडा कर रहे थे । वे परिजनोंसे वेष्टित हो सरोवरमें मजन, जलकेलिके अतिरिक्त विभिन्न लताओं और विटपोंसे पुष्पावचय करने में संलग्न थे । प्रकृतिको रमणीय गोदमें विचरण करनेके कारण उन्हें अपूर्व सुख प्राप्त हो रहा था। इस समय प्रजापति ललित क्रीड़ाओंमें भी संलग्न थे। एक और मनोरम नत्य हो रहा था और दूसरी ओर संगीतका अखाड़ा जमा हुआ था। ध्रुपद और धमारको ध्वनि सभोको अपनी ओर आकृष्ट कर रही थी। इसी आमोद-प्रमोद के समय पुष्पकरण्डक उद्यानमें ही इन्द्र मंत्री पहुँचा और उसने प्रतिहारी द्वारा अपने आनेका समाचार राजा प्रजापतिके पास पहुँचाया । प्रजापतिने मंत्रीको आसन देकर रथनूपुरचक्रवाल नगरके सम्राट् ज्वलनजटोका कुशल समाचार पूछा । मंत्रीने बहुमूल्य मणि-माणिक्य आदिकी भेंट उपस्थित कर पत्र प्रस्तुत किया। प्रजापति पत्रको पढ़कर अत्यन्त प्रसन्न हुआ। पत्रमें लिखा था कि संधि-विग्रहमें निपुण विद्याधरोंका स्वामी अपने लोकका शिखामणि, प्रजावत्सल, महाराज नमिके वंशरूपी आकाशका सूर्य ज्दलनजदी रथनपुर नगरसे पोदनपुरनरेश तीर्थंकर ऋषभदेवके पुत्र बाहुबलिके
तीर्थकर महावीर और उनकी देशना : ३९