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[ ३७ ] क्रम संग
पृष्ठ सं० | श्रम सं० ५७ ढाई द्वीपके पागे मनुष्य नहीं; केवल ७४ अन्तिम द्वीप एवं समुद्र का नाम, अवतिर्यञ्च हैं।
३७१ स्थान तथा व्यास ५८ पुष्करवर द्वीप के आगे के द्वीप समुद्रों ७५ मागेन्द्र पर्वत, तिर्यग्लोकके अन्तमें प्रव__ के नाम व स्वामी
स्थित कर्मभूमि और उसमें रहने वाले ५६ नन्दीश्वर नाम के अष्टम द्वीप की अव
तिर्यचों का कथन
३८७ स्थिति
७६ बाह्य पुष्कराध रक्षकदेव और मानुषो६. अंजनगिरि पर्वत और वापिकाओं का
तर पर्वत की परिधि का प्रमाण ३८८ अवस्थान
३७४ | ७७ महामत्स्यों का व्यास ६१ सोलह वापिकानों के नाम और उनके | ७८ एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीवों के स्वामी
शरीर का प्रायाम ६२ दधिमुख पर्वतों की संख्या, अवस्थान, ७६ समुद्रों के जलों का स्वाद वर्ण और व्यास
| ८० स्वयम्भूरमण समुद्र का व्यास ३६२ ६३ रतिकर पर्वतों एवं सब जिनालयों का
८१ उपसंहार वर्णन
८२ अधिकारान्त मंगलाचरण ६४ प्रशोक आदि बन एवं चैत्य वृक्ष ६५ वन स्थित प्रासादों व अष्टाह्निकी पूजा
एकादश अधिकार __ का वर्णन
(जीवों के भेद-प्रमेदों का वर्णन) ६६ इन्द्रों द्वारा एक ही दिन में चारों
१ मंगलाचरण
३६४ दिशाओं की पूजन का विधान
२ जीव के भेद और सिद्ध जीव का स्वरूप ३६४ ६७ नन्दीश्वर द्वीप के स्वामी
३६१ ३ स्थावर जीवों के भेद
३६४ ६८ नन्दीश्वर समुद्र की एवं दो द्वीपों की।
४ जीवों की कुल योनियां अवस्थिति
५ पृथ्वी के चार भेद' और उनके लक्षण ३६५ ६६ कुण्डलद्वीपस्थ कुण्डलगिरि के व्यास का
६ जल, अग्नि और वायु के चार-चार भेद ३६६
३८२ प्रमाण ७० कुण्डल गिरिस्थ कूटोंका अवस्थान, संख्या
७ वनस्पति के भेद और लक्षण ३६७ व व्यास
३८२ | ८ पंच स्थावरों के चेतन/अचेतन भेद ३९७ ७१ शंखवरद्वीप और हमकद्वीपको अवस्थिति ३८३ ९ मृदु पृथ्वी का यिक जीधों के भेदों का ७२ रुचकगिरि पर स्थित कूटोंका प्रवस्थान,
निरूपण संख्या और स्वामी
३८४ | १० खर पृथ्वी के भेदों का निरूपण ३९८ ७३ कुछ द्वीप समुद्रों के नाम एवं उनकी ११ पृथ्वोकायिक पृथ्वी से बने हुए पर्वत अकृत्रिमता ३.६ एवं प्रासादों का कथन
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