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ભારત કે સ્વાધીન બનાઓ · ५५-जना जननी ने उसको व्यर्थ
किया जिसने न विजय संसार, छेड़ कर स्वतंत्रता की तान ।
अनूठी वीरोचित धज धार, पिया जिसने न मातृ-गुण-गान॥१॥ रहा जो जीवन भर परतंत्र, मिटाकर अतुल आर्य अभिमान। किया जिसने न स्वदेश स्वतंत्र, शेर शिवराज-प्रताप समान॥२॥ देख कर होते अत्याचार, न ली जिसने कर में करबाल । रहा जो भेष जनाना धार, जनानों की दिखलाता चाल ॥३॥ न फड़काये जिसने निज अङ्ग, हृदय में विपुल वीर व्रतधार । जमा कर देशप्रेम का रंग, किया जिसने न शक्ति संचार ॥४॥ धरा धन धाम स्वजन रक्षार्थ, कभी जो हो पाया न समर्थ । न निकला जिससे कोई स्वार्थ, जना जननी ने उसको व्यर्थ ॥५॥
( " पारस।" मासिमा सेम:-श्रीयुत ४५४५७ )
५६-भारत को स्वाधीन बनाओ
वीर-वेश से सज कर वीरो, रण प्रांगण में जाओ। प्रलयंकारी, गर्जन कर के, रिपु को तुम दहलाओ॥
___ भारत को स्वाधीन बनाओ! रिपुकोतुम दहलाओअथवा,भारत पर बलिजाओ। समरांगण से पीठ मोड़ मत, मा का दूध लजाओ।
__ भारत को स्वाधीन बनाओ! मरते हो मर जाओ रण में, वीरादर्श दिखाओ। अथवा रण-विजयी हो भारतको स्वाधीन बनाओ। ( "वा२सश" भासिमा मि-श्री.
विजेरी, विशा२६५)
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