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अनुपशयः [ न० त० ] रोग को उभाड़ने या भड़काने | अनुप्रवेशः [ अनु+प्र+विश्+पश्] 1 दाखला-रष. वाली परिस्थिति।
३३२२, १०५१, 2 अनुकरण-अपने को दूसरे की अनुपसंहारिन न० त०] न्यायशास्त्र में हेत्वाभास का | इच्छा के अनुकूल ढालना।
एक भेद जिसके अन्तर्गत पक्षसंबंधी सभी ज्ञात बातें अनुप्रयनः [प्रा० स०] बाद में किया जाने वाला प्रश्न । आ जाती है, और दृष्टान्त द्वारा, चाहे वह विषेयात्मक (अध्यापक के पूर्व कपन से संबंड)। हो या निषेधात्मक, कार्यकारण-सिद्धांत के सामान्य अनुप्रसक्तिः (स्त्री०) [अनु++सं+क्तिन्] 1 प्रगाढ़ नियम का समर्थन नहीं हो पाता-यथा सवं नित्यं प्रमे- संबंध 2 शब्दों का अत्यधिक तर्क संगत सम्बन्ध । यत्वात् ।
अनुप्रसादनम् [ अनु+प्र+सद्+णिच् + ल्युट ] आराषन, अनुपसर्गः [न० त०] 1 उपसर्ग की शक्ति से विरहित संराषन ।
शब्द [ निपात आदि ] 2 (न० ब०) जिसमें कोई अनुप्राप्तिः (स्त्री०) [अनु+प्र+आप+क्तिन् ] प्राप्त उपसर्ग न हो।
___ करना, पहुँचना। कनुपस्थानम् [अनुप+स्था+ ल्युट्] अभाव, निकट न होना। | अनुप्लवः [अनु+प्लु+अच् ] अनुयायी, सेवक-सानुप्लवः गनुपस्थित [न+उप-+स्था+क्त ] जो उपस्थित नहीं, | प्रभुरपि क्षणदाचराणाम्र पु. १३७५ ।। अप्रस्तुत।
अनुप्रासः [ अनु+:+अस्+घश ] एक समान ध्वनियों आनुपस्थितिः (स्त्री०) [ अनुप+स्था+क्तिन् ] 1 गैर- अक्षरों या वर्णों की पुनरावृत्ति-वर्णसाम्यमनप्रासः हाजरी 2 याद करने की अयोग्यता।
-काव्य०; परिभाषा और उदाहरणों के लिए दे. अनुपहत (वि०) [न० त०] 1 जिसे चोट नहीं लगी2 सा०६० ६३३-३८, और काव्य० ९वां उल्लास । अप्रयुक्त, कोरा, नया (कपड़ा)।
अनुबद्ध (वि.) [अनु+बं+क्त ] 1 बंधा हुमा, जकड़ा अनुपाख्य (वि.) [न० ब.] जो स्पष्ट रूप से दिखलाई
हुआ; 2 यथा क्रम अनुसरण करने वाला, फल स्वरूप न दे या पहचाना न जा सके।
आने वाला 3 संबद्ध 4 अनवरत चिपका हुआ, लगातार। अनुपातः=तु० अनपतनम् ।
अनुबंधः [अनु+बंध+घञ ] 1 बंधन, कसना, संबंध, अनुपातकम् [ अनु+पत्+णिच् ।- वुल ] जघन्य पातक आसक्ति, बंधान (शब्द० आलं) 2 अबाध परम्परा,
जैसे चोरी, हत्या, व्यभिचार आदि, विष्णुस्मृति में ऐसे सातत्य, श्रेणी, शृंखला-बाष्पं कुरु स्थिरतया विर
३५ तथा मनुस्मृति में ३० पातक गिनाये गये हैं। तानुबंधम-श०४।१४; वैर', मत्सर; सानुबंधा: अनुपानम् [ अनु+पा+ल्युट ] दवा के साथ या पीछे पी कथं न स्युः संपदो मे निरापद:- रघु० १०६४; 3 अनुजाने वाली वस्तु; औषधि लेने की मात्रा।
क्रम, फल (शुभ या अशुभ) 4इरादा, योजना, प्रयोजन, अनुपालनम् [ अनु+पाल् + ल्युट् ] प्ररक्षण, सुरक्षण, आज्ञा- कारण-अनुबंध परिज्ञाय देश-कालौ च तस्वतः । सारापालन ।
पराधी चालोक्य दण्डं दंडघेषु पातयेत-मनु०८।१२६, अनुपुरुषः [ प्रा० स० ] अनुयायी।
5 संबंध जोड़ने वाला, गौण 6 आरंभिक तर्क (वेदान्त अनुपूर्व (वि.) [प्रा० स०] 1 नियमित, उपयुक्त मान
के आवश्यक तत्त्व)7 (व्या०) एक संकेतक अक्षर रखने वाला, क्रमबद्ध-वृत्तानपूर्वेचन चातिदी
जो कि इस शब्द के स्वर या विभक्ति में कुछ विशेकु० ११३५ °केश जिसके बाल यथाक्रम है, गात्र जिस
षता का द्योतक हो जिसके साथ वह जुड़ा हो-जैसे के अंग सुगठित हैं, इसी प्रकार दंष्ट्र, नाभि, "पाणि
कि 'गम्ल' में ल 8 बाघा, रुकावट 9 आरंभ, उपक्रम 2 क्रमबद्ध सिलसिलेवार 1 सम-ज(वि.)नियमित 10 मार्ग, अनुगमन। परम्परा में उत्पन्न,-वत्सा नियमित रूप से बच्छे | अनुबंधनम् [ अनु+बंध् + ल्युट् ] संबंध, परम्परा, सिलदेने वाली गाय ।
सिला आदि । अनपूर्वशः) (कि० वि०) नियमित क्रम में, क्रमागत रीति | अनुबंधिन् (वि.) [अनुबंध+णिनि ] [प्रायः समस्त पद मनपूर्वेण | से।
के अन्त में] 1 संबद्ध, संसक्त, संयुक्त 2 क्रम, परिअनुपेत (वि०) [न० त०] 1 विरहित २ यज्ञोपवीत धारण णामी, फलस्वरूप-दुःखं दुःखानुबंधि-विक्रम० ४ एक न किये हुए।
दुःख के बाद दूसरा दुःख या दुःख कभी अकेला नहीं अनुप्रज्ञानम् [ अनु++ज्ञा+ ल्युट् ] पदचिह्नों का अनु- आता 3 फलता फूलता हुआ, सम्पन्न, अबाध-ऊध्वं सरण, टोह लगाना।
गतं यस्य न चानुबंधि-रघु० ६।६७, अबाघ या सर्व अनुप्रपातम्, प्रपावम्-- [अव्य० स०] क्रमागत रीतिपूर्वक- व्यापक।
गेह तम्-दम् आस्ते, गेहम् अनुप्रपातम्-दम् सिद्धा०।। अनुबंध्य (वि.) [अनु+बंध् + ण्यन् ] 1 प्रधान, मुख्य; अनुप्रयोगः [प्रा० स० ] अतिरिक्त उपयोग, आवृत्ति । mmar.1 अतिरिक्त उपयोग. आवत्ति।
2 मारे जाने के लिए (जैसे बैल।
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