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( ३७ ) अनुग्रहः-हणम् [अनु-+ग्रह +अप, ल्युट वा] 1 प्रसाद, । अनुतिलम् (अव्य० स०) दाना दाना करके अर्थात कण
कृपा, उपकार, आभार-निग्रहानुग्रहकर्ता-पंच० । कण करके, अत्यन्त सूक्ष्मता से। १ पादार्पणानुग्रहपूतपृष्ठम्-रघु० २।३५; 2 स्वीकृति | अनुत्क (वि.) [न० त०] जो अधिक उत्सुक न हो, जो 3 सेना के पृष्ठभाग की रक्षा करने वाला दल ।
पश्चात्तापकारी या खेदयुक्त न हो। अनुप्रासकः [प्रा० स०] कौर, निवाला।
अनुसम (वि.) [न० त०] 1 जिससे अच्छा कोई और न अनुचरः [अनु+च+ट] 1 सहचर, अनुयायी, नौकर, हो, जिससे बढ़िया कोई और न हो, सबसे अच्छा,
सेवक-तेनानुचरेण घेनोः-रघु० २१४, २६।५२; सबसे बढ़िया, प्रमुख रूप से सर्वोपरि-सर्वद्रव्येषु -रा-रो (स्त्री)दारी, सेविका ।
विद्येव द्रव्यमाहुरनुत्तमम्-हि.प्र.४;-कांक्षन् गतिअनुचारकः [अनु+चर्ण्वु ल्] अनुचर, सेवक,–रिका मुत्तमाम्--मनु० २।२४२; 2 (व्या० में) जो उत्तम दासी सेविका।
पुरुष में प्रयुक्त न किया जाय। अनुचित (वि०) [न० त०] 1 गलत, अनुपयुक्त 2 निराला, | अनुत्तर (वि०) [न० त०] 1 प्रधान, मुख्य 2 बढ़िया, अयोग्य।
सर्वोत्तम 3 बिना उत्तर का, मूक, उत्तर देने में असमर्थ अनुचिन्ता, चिन्तनम् [अनु+चित्+अ+टाप, ल्युट वा] -भवत्यवज्ञा च भवत्यनुत्तरात्-० 4 निश्चित,
1 याद करना, सोचना, मनन करना 2 प्रत्यास्मरण, स्थिर 5 निम्न, घटिया, खोटा, कमीना 6 दक्षिणी, फिर से ध्यान में लाना, 2 अनवरत सोच, चिन्ता।
-रम् उत्तर का अभाव, (टालमटूल या बानाकानी अनुच्छादः [अनु+छ+णिच्+घन] साड़ी या धोती का उत्तर अनुत्तर समझा जाता है) -रा दक्षिण
का वह छोर जो कंधे के ऊपर होकर छाती पर लट- दिशा। कता रहता है।
अनुत्तरंग (वि.) [न० ब० ] स्थिर, अनुद्वेलित, मविक्षुब्ध अनुच्छित्तिः, (स्त्री०)-च्छेदः[अनु+छिद्+क्तिन, घा वा] ____-अपामिवाधारमनुत्तरंगम्-कु० ३।४८ ।
कट कर अलग न होना, नाश न होना, अनश्वरता। | अनुत्थानम् [न० त०] प्रयत्न या सरगर्मी का अभाव । अनुज-जात (वि.) [अनु+जन्+ड, क्त वा] बाद में | अनुत्सूत्र (वि०) [न० त०] पाणिनि या नैतिकता के
उत्पन्न, पीछे जन्मा हुआ, छोटा भाई-असौ कुमार सूत्रों से अविरुद्ध, अविश्रृखल, नियमित- पदन्यासास्तमजोऽनुजातः रघु० ६७८;-जः,-जातः छोटा भाई, सद्वतिः सन्निबंधना --शि० २।११२ । -जा,-जाता छोटी बहन ।
अनुत्सेकः [न० त०] घमंड या अहंकार का अभाव अनुजन्मन् (पुं०) [ब० स०] छोटा भाई-जननाथ तवा- कोलक्ष्म्यां-भग० २।६३, शालीनता। नुजन्मनाम्-कि० २।१७ ।
| अनुत्सेकिन् (वि.) [अनुत्सेक+णिनि ] जो घमंड के अनजीविन (वि.) [अनुजीव+णिनि] आश्रित, परोप- कारण फूला हुआ न हो-भाग्येषु °नी भव-२०४। 'जीवी-(पुं०-बी) परावलंबी, सेवक, अनुचर-अवंचनीयाः प्रभवोऽनुजीविभि:-कि० ११४, १० ।
अनुदर (वि०) [न० ब०] पतली कमर वाला, पतला, मनुमा-शानम् [अनु+ज्ञा+अङ, ल्युट् वा] 1 अनुमति, कृश, क्षीण (दे० 'अ') सहमति, स्वीकृति 2 जाने की अनुमति
अनुदर्शनम् [ अनु + दृश्+ल्युट् ] निरीक्षण । 4 आशा, आदेश।
अनुदात्त (वि.) [न० त०] गुरुस्वर, जो उदात्तस्वर की .अनुमापकः [अनु+जा+णिच्+ण्वुल्] आज्ञा देने वाला, भाँति उच्च स्वर से उच्चरित न होता हो, स्वरापात हुक्म देनेवाला।
हीन-तः गुरुस्वर। अनुज्ञापनम्-गाप्तिः (स्त्री०) [अनु+ज्ञा+णिच् + ल्युट्, । अनुवार (वि.) अनु [न० त०] 1 जो उदार (दानशील)न "क्तिन् वा] 1 अधिकृत बनाना 2 आज्ञा या आदेश हो, कंजूस, अनुत्तम,अभद्र 2 जो अपनी पत्नी के अनुकूल जारी करना।
चलने वाला हो या वह जिसकी पत्नी पति के अनुकूल अनुज्येष्ठम् (अव्य०) ज्येष्ठता की दृष्टि के अनुसार। चलने वाली हो-यस्मिन्प्रसीदसि पुनः स भवत्युदारोऽ मनुतर्षः [अनु+तृष्+घञ] 1 प्यास--सोपचारमुपशांत- नुदारश्च-काव्य० ४; ('अदाता' के अर्थ में भी प्रयुक्त विचारं सानुतर्षमनुतर्षपदेन--शि० १०२ ( प्यास होता है) 3 उपयुक्त और योग्य पत्नी वाला। और सुरा), 2 कामना, इच्छा 3 जल पीने का पात्र अनुदिनम्-दिवसम् (अव्य० स०) प्रतिदिन, दिन-ब-दिन । 4 मद्य।
अनुदेशः [अनु+दिश्+घा 1 पीछे संकेत करना, नियम अनुतापः [अनु+तप्+घञ] पश्चात्ताप, संताप-- या निदेश जो पीछे किसी पूर्व नियम की ओर संकेत
जातानुतापेव सा-विक्रम० ४।३८ संताप से पीडित । करे—यथासंख्यमनुदेशः समानाम-पा० ११३।१०; 2 अनुतर्षणम् अनुतर्ष: 3 और 4 ।
निदेश, आदेश ।
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