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अनिर्देश्य (वि.) [न० त०] अपरिभाषणीय, अवर्णनीय । हो, जिसका निराकरण न किया गया हो (दोषारोपण -श्यं परब्रह्म की उपाधि ।
की भांति)। अनिर्धारित (वि.) [न० त०] जिसका कोई निर्णय या | अनीक:-कम् [ अन् + ईकन ] 1 सेना, संन्यपंक्ति, सैनिक निश्चय न हुआ हो।
दस्ता, दल, दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकम्--भग०-११२2 अनिर्वचनीय (वि०) [न० त०] 1 कहने के अयोग्य, समुह, वर्ग 3 संग्राम, लड़ाई, युद्ध 4 पंक्ति, श्रेणी,
अवर्णनीय 2 वर्णन करने के अयोग्य-यम् (वेदान्त में) चलती हुई सेना की टुकड़ी 5 अग्रभाग, प्रधान, मुख्य । 1 माया, भ्रम, अज्ञान, 2 संसार ।
सम-स्थ: 1 योद्धा 2 सिपाही (सुसज्जित), पहरेअनिर्वाण (वि.) [न० ब०] अनधुला, जिसने अभी स्नान | दार 3 महावत या हाथी का प्रशिक्षक 4 युद्धभेरी नहीं किया।
या बिगुल 5 संकेतक, चिह्न, संकेत । अनिवः [ न० त०] अनवसाद, विषाद या नैराश्य का
अनीकिनी [अनीकानां संघ:-अनीक+इनि+हीप] 1 अभाव, स्वावलंबन, उत्साह ।
| सेना, सैन्यदल, सैन्यश्रणी 2 तीन सेनाएं या पूर्ण सेना अनिवृत्त (वि०) न० त०] खिन्न, अशान्त, दुःखी।
(अक्षौहिणी) का दशम भाग । अमितिः । (स्त्री) [न० त०] 1बेचैनी, विकलता 2 [
अनील (वि.) [न० त०] जो नीला न हो, श्वेत, बाजिन्
वि .न. जो नीला न हो त - अनिवृत्तिः निर्धनता अनिर्वृतिनिशाचरी मम गृहांतरालं
(पुं०) श्वेत घोड़े वाला, अर्जुन । गता-उद्भट ।
अनीश (वि०) [न० त०] 1 प्रमुख, सर्वोच्च 2 स्वामी या अनिल: [अन् + इलच् ] 1 वायु 2 वायदेवता 3 उपदेवता, ।
नियंता न होना (संबं के साथ) गात्राणामनीशोऽस्मि जो संख्या में ४९ है तथा वायु की श्रेणी में आते हैं 4
संवृत्तः-श० २,-वाः विष्णु । शारीर में रहने वालो वायु-त्रिदोषों में से एक-वात
अनीश्वर (वि.) [न० त०] 1 जिसके ऊपर कोई न हो, 5 गठिया या और कोई रोग जो वातप्रकोप के कारण
अनियंत्रित 2 असमर्थ-शयिता सविधेप्यनीश्वरा सफली उत्पन्न माना जाता है। सम०-अयनम् वायु का
कर्तुमहो मनोरथान-भामि० २।१८२३ जो ईश्वर से मार्ग,-अशन,-आशिन् (वि.) वायुभक्षी, उपवास करने वाला (पुं०-न) साँप-आत्मजः वायु
संबंध न रक्खे 4 नास्तिक । सम०-वादः नास्तिक वाद,
ईश्वर को सर्वोच्च शासक न मानने वाला, नास्तिक । का पुत्र, हनुमान् और भीम की उपाधि,-आमयः 1
अनीह (वि०) [न० त०] उदासीन, इच्छारहित, हा वातरोग 2 गठिया,-सखः अग्नि (वायु का मित्र),
अवहेलना, उदासीनता। इसी प्रकार बंधुः।
अनु (अव्य०) [अव्ययीभाव समास बनाने के लिए संज्ञा मनिलोडित (वि.) [न० त०] जो सुविचारित न हो,
शब्दों के साथ प्रयुक्त होता है, या क्रिया अथवा कृदन्त सुनिर्णीत न हो-°कार्यस्य वाग्जाल वाग्मिनो वृथा--- शब्दों से पूर्व जोड़ा जाता है, अथवा स्वतंत्र संबंधबोधक शि० २।२७।
अव्यय के रूप में कर्मकारक के साथ प्रयुक्त होता है अनिशम् (अव्य०) [न.ब.] लगातार, निरन्तर--
और कर्म प्रवचनीय माना जाता है ] 1 पश्चात्, पीछे; अनिशमपि मकरकेतुर्मनसो रुजमावहन्नभिमतो मे- सर्वे नारदमन उपविशति—विक्रम०५; क्रमेण सुप्ताश० ३।४, भामि०२।११२।
मनु संविवेश सुप्तोत्थितां प्रातरनुदतिष्ठत्-रघु० अनिष्ट (वि०) [न० त०] 1 न चाहा हुआ, जिसकी
२।२४; अनुविष्णु-विष्णोः पश्चात् सिद्धा० 2 साथइच्छा न हो, अननुकूल 2 अनर्थ 3 बुरा, दुर्भाग्यपूर्ण, साथ, पास-पास ; जलानि सा तीरनिखातयुपा वहत्ययोअमंगलसूचक 4 यज्ञ द्वारा असम्मानित, --ष्टम् 1 ध्यामनुराजधानीम्-रघु० १३।६१; अनुगंग वाराबुराई, दुर्भाग्य, विपत्ति, 2 असुविधा, अहित । सम०
णसी-गंगा के साथ-साथ स्थित या बसी हुई; 3 के -आपत्तिः (स्त्री०)-आपावनम् अवांछित पदार्थ का
बाद, फलस्वरूप, संकेत किया जाता हुआ-जपमन प्राप्त करना, जवांछित घटना-प्रहःबुराया हानिकारक प्रावर्षत् 4 के साथ, साथ ही, संबद्ध-नदीमनु अवसिता ग्रह, -प्रसंग: 1 अनीप्सित घटना 2 सदोष पदार्थ,
सेना-सिद्धा० 5 घटिया या निम्न दर्जे का; अनुहरि तर्क या नियम से संबंध, –फलम् बुरा परिणाम सुराः-हरेहींनाः; 6 किसी विशेष स्थिति या संबंध---शंका बुराई की आशंका, -हेतुः अपशकुन ।
भक्तो विष्णुमनु सिद्धा० 7 भाग, हिस्सा, या साझा मनिष्पत्रम् ( अव्य० ) [न० त०] इस प्रकार जिससे कि रखने वाला-लक्ष्मीहरिमनु, पुनरावृत्ति; अनुविव
तीर का पंखयुक्त पक्ष दूसरी ओर न निकले अर्थात सम-दिन-ब-दिन, प्रति दिन १ की ओर, दिशा में, के बहुत बलपूर्वक नहीं।
निकट, पर,-अनुवनमशनिर्गतः-सिद्धा-नवि-नदि अनिस्तीर्ण (वि.) 1 जो पार न किया गया हो, जिससे शि० ७२४; नदी के निकट 10 क्रमानुसार, के अनु. छुटकारा न मिला हो 2 जिसका उत्तर न दिया गया । सार, अनुक्रमम्, नियमित क्रम में, अनुज्येष्ठम्
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