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( ३८ ) अनुरत (वि.) [न० त०] जो अहंकारी या गर्वयुक्त न । करना, अनुसरण 3 भाग 4 राशिक-तम् (अव्य०)
हो-ताः सत्पुरुषाः समृद्धिभिः-श० ५।१२।। [ पत्+णमुल ] ऋमिक अनुसरण, अनुगमन;-लताअनुङ्कट (वि.) [न० त०] 1 जो साहसी न हो, विनीत, नुपातं कुसुमान्यगृह्णात्-भटि० २०११; (लतामनुसौम्य 2 जो उन्नत या बहुत ऊँचा न हो।
पात्य--एक लता से दूसरी लता पर जाकर, या अमुवत (वि०) [अनु++क्त 11 अनुगत, पीछा किया । लताओं को झुका कर)।
गया (कई बार कर्तृ० में प्रयुक्त) 2 भेजा हुआ या | अनुपथ (वि.) [प्रा. स०] मार्ग का अनुसरण करने लौटाया हुआ (जैसे कि ध्वनि) सम् संगीत में काल वाला,-थम् (क्रि०वि०) सड़क के साथ साथ ।। की माप आधा द्रुत ।।
अनुपद (वि.)[प्रा० स०] नितान्त कदम कदम अनुसरण अनुहाहः [न० त०] विवाह न होना, ब्रह्मचर्य पालन । करता हुआ,-बम् सम्मिलित गायन, गीत का टेक, अनुषावनम् [अनु+बा+ल्युट्] 1 पीछे जाना या भागना,
(अव्य.) 1 कदम के साथ-साथ, पैरों के निकट; 2 पीछा करना, अनुसरण करना-तुरग कंडितसंघे:
कदम कदम करके, प्रति पद; 3 शब्दशः 4 एड़ियों पर, पा०२; 2 किसी पदार्थ का अत्यंत पीछा करना, अनु
बिल्कुल पीछे, तुरन्त बाद-गच्छतां पुरो भवन्तौ,' अहसंघान, गवेषणा 3 किसी स्त्री को पाने का असफल मप्यनुपदमागत एव-श०३ (प्रायः संब०के साथ, या प्रयत्न करना 4 सफाई, पवित्रीकरण ।
समास में इसी अर्थ में); (तो) आशिषामनुपदं समअनुध्यानम् अनु+ध्या+ल्यूट ] 1 विचार, मनन, धार्मिक स्पृशत् पाणिना-रषु० ११॥३१-अमोधाः प्रतिगई
चिंतन 2 सोचविचार, याद,-या न: प्रीतिविरूपाक्ष तावानुपदमाशिषः-१०४४। त्वदनुध्यानसंभवा-कु०६२१; 3 हितचिन्तन, स्नि- अनुपदवी [प्रा० स०] मार्ग, सड़क । ग्धचिन्तन ।
अनुपदिन् (वि०) [ अनुपद+णिनि ] अनुसरण करनेवाला अमुनयः [ अनु+नी+अच्] 1 मनावन, प्रार्थना प्रकृ- इंढने वाला अर्थात् अन्वेषक, या पृच्छक-अनुपदमन्वेष्टा
तिवक्रः स कस्यानुनयं प्रतिगृह्माति-श०४; 2 शाली- गवामनुपदी सिद्धा। नता, शिष्टता, सान्त्वनायुक्त आचरण, 3 नम्रनिवेदन, | अनुपदीना [ अनुपद+ख+टाप् ] जूता, बूट, ऊँची एड़ियों मिन्नत, प्रार्थना, आमंत्रणम-विनीत संबोधन 4 अनु- का जूता, या चप्पल ।।
शासन, प्रशिक्षण, आचरण के अधिनियम । अनुपषः [न० ब०] उपधा रहित, ऐसा अक्षर जिसके पूर्व अनुनावः [ अनु+न+घञ्] शब्द, कोलाहल, गूंज कोई दूसरा अक्षर न हो। प्रतिध्वनि।
अनुपषि (वि.) [न.ब.] छल रहित, कपट रहितअनुनायक (वि०) [अनु+नी+ण्वुल् ] सुशील, विनम्र,
रं साधूनामनुपधि विशुद्धं विजयते--उत्त० २।२ । विनीत ।
अनुपन्यासः [न० त०]1 वर्णन न करना, बयान न देना 2 अनुनायिक (वि.) [ अनु+नय+ठक् ] मैत्रीपूर्ण,-का अनिश्चितता, सन्देह, प्रमाणाभाव ।
नाटक की मुख्य पात्र नायिका की अनुचरी जैसे | अनुपपत्तिः (स्त्री०) [ न० अ०] 1 असफलता, असिद्धि,कि सखी, घात्री या दासी आदि;-सखी प्रवजिता लक्षणा शक्यसंबंधस्तात्पर्यानुपपत्तित:-भाषा० ८२, दासी प्रेष्या घात्रेयिका तथा । अन्याश्च शिल्पकारिण्यो तात्पर्य उद्दिष्ट या किसी संबद्ध अर्थ को प्राप्त करने विज्ञेया ह्यनुनायिकाः।
में असफलता; 2 अव्यावहारिकता, ध्यावहारिक न होना बनुनासिक (वि.) [अनु+नासा+ठ] 1 नासिक्य, 3 अधूरीयुक्ति, तर्कयुक्त कारण का अभाव ।
नासिका से उच्चरित,-कम् गुनगुनाना। सम० अनुपम (वि.) [न० ब०] अतुलनीय, बेजोड़, सर्वोत्तम, --आदिः अनुनासिक वर्ण (अणन म्) से आरंभ अत्यंत श्रेष्ठ-मा दक्षिण पश्चिम प्रदेश की हथिनी होने वाला संयुक्त व्यंजन।
(कुमुद की सखी)। अनुनिर्देशः [अनु+निर्+दिश+घञ् ] पूर्ववर्ती अनुक्रम अनुपमित (वि.) [न +उप+मा+क्त, अनुपमा
के अनुसार वर्णन,-भूयसामुपदिष्टानां क्रियाणामथ | अनुपमेय +य ] बेजोड़, अतुलनीय । कर्मणाम् । क्रमशो योऽनुनिर्देशो यथासंख्यं तदुच्यते । | अनुपलब्धिः (स्त्री०) [ न० त०] पहचान न होना, प्रत्यक्ष सा०६०।
न होना, मीमांसकों की दृष्टि में ज्ञान का एक साधन, अनुनीतिः=तु० अनुनयः
परन्तु नैयायिकों की दृष्टि में नहीं।। अनुपपातः[ न० त०] उपधात या क्षति का अभाव, | अनुपलभः [ना+उप+लभ+णि+घ ] बोध का
-अर्जित बिना किसी क्षति के प्राप्त किया। अनुपातनम्-पातः [ अनु+पत्+ल्युट, घा वा] 1] अनुपवीतिन् [न० त०] अपने वर्ण के अनुसार यज्ञोपवीत
ऊपर पड़ना, एक के बाद दूसरे का गिरना 2 पीछा । धारण न करने वाला।
या क्षति का अभाव, | अनुभाव, अप्रत्यक्ष होना ।
के अनुसार यज्ञोपवीत
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