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सम्मका पोटिका
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का विधान विषै ध्रुवोदयी आदि प्रकृतिनि का वर्णन करि तिन पंचकानि की अपेक्षा लीए जिस-जिस प्रकार वीस प्रकृति रूप स्थान तें लगाया संभवते नाम के उदयस्थाननि का, श्रर तहां प्रकृति बदलने करि संभवते भंगति का वर्णन है । बहुरि नाम के स्वस्थानविवर्णन दिपैं तिरागवे प्रकृतिरूप स्थान आदि जैसे जै सत्त्वस्थान है तिनका श्रर तहां जिन प्रकृतिनि की उद्वेलना हो है तिनके स्वामी वा क्रम वा कालादिक विशेष का, अर सम्यक्त्व, देशसंयम, अनंतानुबंधी का विसंयोजन, उपशमश्रेणी चढना, सकलसंयम धरना, ए उत्कृष्टपने केती वार होइ तिनका, अर च्यारि गति की अपेक्षा लीए गुरणस्थाननि विषै जे सत्त्वस्थान संभव तिनका, अर इकतालीस जीवपदनि विषै सस्वस्थान संभव तिनका वर्णन है ।
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बहुरि त्रिसंयोग विषै स्थान वा भंगति का वर्णन है । तहां मूल प्रकृतिनि विषै जिस-जिस बंधस्थान होतें जो-जो उदय वा सस्वस्थान होइ ताका, अर ते मुरणस्थाननि विधें जैसे संभवें ताका वर्णन है । बहुरि उत्तर प्रकृतिनि विषै ज्ञानावरण, अंतराय का तो पांच-पांच ही का बंध, उदय, सत्त्व होइ तातें तहां विशेष वर्णन नाहीं । अर दर्शनावरण विषै जिस-जिस बंघस्थान होतैं जो-जो उदय वा सत्त्वस्थान गुणस्थान अपेक्षा संभव ताका वर्णन है, घर वेदनीय विषं एक-एक प्रकृति का उदयबंध होतें भी प्रकृति बदलने की अपेक्षा, वा सत्त्व दोय का वा एक का भी हो है, arit अपेक्षा गुणस्थान विषै संभवते भंगति का वर्णन है । बहुरि गोत्र विषे नीच उच्च गोत्र के बंध, उदय, सत्व के बदलने की अपेक्षा गुणस्थाननि विषं संभवते भंगनि का वर्णन है । बहुरि श्रायु विषै भोगभूमियां आदि जिस काल विषे प्रायुबंध करें ताका, एकेंद्रियादि जिस श्रायु कीं बांध ताका नारकादिकति कैं आयु का उदय, सत्त्व संभव ताका घर आठ अपकर्ष विषे बंधे ताका, वहां दूसरी, तीसरी बार आयुबंध होने विषे घटने बधने का, पर बध्यमान- भुज्यमान श्रायु के घटने रूप अपवर्तनघात, कंदलीघात का वर्णन करि बंध, प्रबंध, उपरितबंध की अपेक्षा गुणस्थाननि विषै संभवते भंगति का वर्णन है । बहुरि वेदनीय, गोत्र, आयु इनके भंग मिथ्यादृष्टयादि विषै जेते जेते संभवें, वा सर्व भंग जेते जेते हैं तिनका वर्णन है ।
बहुरि मोह के स्थाननि की सस्वस्थान जैसे पाइए ताका वर्णन प्राधेय, तीन प्रकार, तहां जिस-जिस
अपेक्षा भंग कहि गुणस्थाननि विषे बंध, उदय, करि मोह के त्रिसंयोग विषै एक आधार, दोय बंधस्थान विषै जो-जो उदयस्थान, वा