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[ गोम्मटसार कर्मकाण्ड सम्बन्धी प्रकरण :
का उपशम होइ ताका, तहां लब्धि यादि होने का अर प्रथमोपशम सम्यक्त्व भए मिथ्यात्व के तीन खंड हो हैं ताका, तहां नारकादिक के जे बंधस्थान पाइए तिनका, तहां नरक विषें तीर्थंकर के बंध होने के विधान का, वा साकार - उपयोग होने का, ar free- farnज के स्वरूप का अर द्वितीयोपशम सम्यक्त्व जाकेँ होइ ताका, तहां पूर्वकरणादि विषै जो-जो क्रिया करता चढे वा उतरे ताका, तहां जे बंधस्थान संभवें ताका, वा तहां मरि देव होय ताकेँ बंधस्थान संभव ताका वर्णन है । बहुरि क्षायिक सम्यक्त्व का प्रारंभ - विष्ठापन जाकें होइ ताका, वा तहां तीन करण हो हैं तिनका, thani गुणश्रेणी श्रादि होने का अर अनंतानुबंधी का विसंयोजनकरि पीछे केई क्रिया करि करणादि विधान तँ दर्शनमोह क्षपावने का, घर तहां प्रारंभ - निष्ठापन के काल का, वा तिनके स्वामीनि का, वा तहां तीर्थंकर सत्तावाले के तद्भव श्रन्यभव विषै मुक्ति होने का वर्णनकरि क्षायिक सम्यक्त्व विषै संभवते बंधस्थाननि का वर्णन है । बहुरि वेदक- सम्यक्त्व जिनकें होइ भर प्रथमोपशम, द्वितीयोपशम सम्यक्त्व ते वा मिथ्यात्व तें जैसे वेदक सम्यक्त्व होइ, अर तिनकेँ जे बंधस्थान पाइए तिनका वर्णन है ।
बहुरि सासादन, मिश्र, मिध्यात्व जहां-जहां जिस-जिस दशा विषै संभवै अर सहां जे बंधस्थान पाइए तिनका वर्णन है । तहां प्रसंग पाइ विवक्षित गुणस्थान तें जिस-जिस गुणस्थान को प्राप्त होइ ताका वर्णन है ।
बहुरि संशी पर श्राहार मार्गणा विषे बंधस्थाननि का वर्णन है । बहुरि नाम के बंधस्थाननि विषै भुजाकारादि कहने को पुनरुक्त, अपुनरुक्त भंगनि का, अर स्वस्थानादि तीन भेदनि का, प्रसंग पाइ गुणस्थाननि तें चढ़ने-उतरने का, जहां मरण न होइ ताका, कृतकृत्य - वेदक सम्यग्दृष्टि मरि जहां उपजै ताका, भुजाकारादिक के लक्षण का घर इकतालीस जीव पदनि विषै भंगसहित बंधस्थाननि का वर्णन करि मिथ्यादृष्टचादि गुणस्थाननि विषै संभवते भुजाकार, अल्पतर, अवस्थित, अवक्तव्य भंगति का वर्णन है ।
बहुरि नाम के उदयस्थाननि का वर्णन विषै कार्माण १, मिश्रशरीर, : शरीरपर्याप्ति, उच्छ्वासपर्याप्ति, भाषापर्याप्ति इन पंचकालनि का स्वरूप प्रमाणादिक कहि, वा केवली के समुद्घात अपेक्षा इनका संभवपना कहि नाम के उदयस्थान हानि १. 'होने का ' ऐसा ख पुस्तक में पाठ है ।