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तुम्हारा दिल कहता है कि अनुगमन करो, तब तुम क्या करोगे? लेकिन हृदय की बात सुनो, अपनी अनुभूति को पहले अनुभव करो, क्योंकि अंततः अपने हृदय के लिए तुम्ही जिम्मेवार होगे। और सब कुछ बाद में आता है, तुम ही प्राथमिक हो। अपने संसार का केंद्र तुम ही हो।
अगर तुम मेरा अनुगमन करने का चुनाव करते हो या तुम मेरे द्वारा दीक्षित होना चुनते हो, यदि तुम मेरे प्रति समर्पण का चुनाव करते हो, पहले अपनी अनुभुति को अनुभव करो। वरना तुम बारबार उलझन में पड़ोगे, और बार-बार तुम सोचने लगोगे, 'मैं यहां क्या कर रहा हूं। तुम सोचने लगोगे, 'मैंने संन्यास क्यों लिया? क्यों? क्योंकि कोई और कह रहा है इसलिए इसे मत लेना। इसे अनुभव करो। तब उलझन कभी नहीं उठेगी। तब यह उठ ही नहीं सकती, तब उलझन का कोई सवाल ही नहीं
उलझन एक गलत क्रियाकलाप है। यदि तुम अपने केंद्र से कार्य करते हो, तो उलझन कभी नहीं पैदा होती। यदि तुम किसी और व्यक्ति के केंद्र से कार्य करो तो लगातार उलझन पैदा ही होती रहेगी
और लोग दूसरों की समझ, सलाहकारों, विशेषज्ञों की राय से कार्य कर रहे हैं। वे उनके द्वारा जी रहे हैं। लोगों ने अपना जीवन पूरी तरह से दूसरों के हाथों में छोड़ रखा है। इसे महसूस करो, अनुभूति के उदय की प्रतीक्षा करो। धैर्य रखो, जल्दबाजी में मत पड़ी। और अगर तुमने अनुभूति को ठीक से महसूस कर लिया है तो तुम्हारी जड़ गहरी है और यही जड़ तुम्हें बल प्रदान करेगी, और यही जड़ किसी उलझन को तुम्हारे पास ठहरने ही नहीं देगी।
प्रश्न:
समस्या क्या है?
जब तुम मेरे लिए समस्या निर्मित कर रहे हो। यह प्रश्न ऐसा ही है, जैसे कोई आए और पूछे
पीलापन क्या है? या 'पीला रंग क्या है? पीले फूल होते हैं, पुराने पीले पत्ते होते हैं, पीला सुनहरा सूर्य होता है और भी हजारों चीजें हैं जो पीली हैं, लेकिन क्या तुमने पीलापन देखा है। पीली चीजें तुमने देखी हैं, लेकिन पीलापन! उसे किसी ने नहीं देखा, कोई देख भी नहीं पाएगा।
समस्याएं ही समस्याएं हैं, लेकिन तुम कभी नहीं जान पाते कि समस्या क्या है; तब प्रश्न निरपेक्ष है। समस्या जैसा कुछ भी नहीं है। समस्याएं इसीलिए हैं क्योंकि तुम्हारे भीतर का अंतवंद समस्या है। तुम्हारे भीतर दो मन हैं, तभी समस्या उठती है। तुम नहीं जानते कहां जाऊं, इस रास्ते या उस रास्ते,