________________
१२ | मुक्ति का अमर राही : जम्बूकुमार
आकर्षक चित्रों की सजावट, सुगन्धित सुन्दर पुप्पो से अलकृत यह कक्ष स्वयं एक नवागत कुलवधू सा प्रतीत होता था । गवाक्षो से आने वाला मन्द मन्द पवन उपवन से राशि राशि सौरभ लेकर आता था । रत्नजटित पर्यंक पर धारिणीदेवी लेटी हुई थी । मन भावी सुख की कल्पनाओ मे निमग्न था । अलसायी देह तन्द्रा का अनुभव करने लगी । अनुकूल शान्त वातावरण पाकर तन्द्रा कब निद्रा में परिणत हो गयी - धारिणीदेवी को इसका भान नही रहा । रगीन कल्पनाएँ उसकी बन्द पलको मे अब भी थी जो निद्रा मे घुलकर नवीन स्वप्नलोक की सृष्टि करने लगी थी । इस नये सुरम्यलोक की रम्यवीथियो मे विचरण करती हुई धारिणीदेवी लोकोत्तर आनन्द का अनुभव करने लगी । स्वप्नो की मायानगरी के विभिन्न दृश्य वह देखती - भूलती चली जा रही थी । इस यात्रा के क्रम में ही रात्रि का अन्तिम चरण आ पहुँचा | तभी अर्धनिद्रित धारिणीदेवी ने स्वप्न मे एक सिंह के दर्शन किये । इसका विचित्र ही प्रभाव उस पर हुआ । सिंह को समक्ष उपस्थित देकर भी न वह भयभीत हुई न उसकी देह मे तनिक भी कम्पन हुआ । वह यथावत् आश्वस्त बनी रही। कुछ ही क्षणो मे उसने नभमण्डल से एक हरे-भरे वृक्ष को नीचे उतरते देखा । पल्लवी से लदे इस वृक्ष के समीप आ जाने पर धारिणीदेवी ने उसे पहचान भी लिया । अरे । यह तो जम्बू का वृक्ष है और श्यामवर्णी सरस फली से भी यह लदा हुआ है । ऐसा सुन्दर वृक्ष और ऐसे स्वस्थ जम्बू फल धारिणीदेवी ने कभी देखे नहीं थे । वह आश्चर्यपूर्वक यह सब देखती रह गयी । वृक्ष उसके समीप से
'