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१६४ | मुक्ति का अमर राहो : जम्बूकुमार जायेगे जैसे उस ब्राह्मण को ग्रस्त होना पड़ा। यह कहते-रहते कनकश्री यकायक ही मौन हो गयी। वह बडे उत्साह के साथ कुमार की ओर देखने लगी कि उसकी इस वार्ता का उन पर क्या और कितना प्रभाव हुमा है ? कुमार अव भी निर्विकार भाव से कनकधी को निहार रहे थे-जैसे उनके लिए अभी यह वार्ता अपूर्ण ही हो। उनके चेहरे पर जमी इस प्रभावशून्यता को पढ कर कनकधी कुछ वुझ सी गयी। उसे पूर्व प्रयत्न कर्ताओ की पराजय स्मरण हो आई और उसके भीतर एक टीस उठी और सारे शरीर मे लहरा गई। स्वत ही उसका मुख उदामी से पुत गया ।