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१६२ | मुक्ति का अमर राही : जम्बूकुमार
कहा कि मुझे कुछ ऐसे गुर तो बताओ, जिससे जो काम भी मैं करू उसमे सफलता और लाभ प्राप्त हो सके ।
माता ने अपने पुत्र से प्रथम बार ही ऐसे वचन सुने थे और इससे उसे कुछ सीमा तक सन्तोष हुआ । तब उसने अपने पुत्र से कहा कि एक बात का विशेष रूप से तुम्हे ध्यान रखना चाहिए कि जो कार्य आरम्भ करो उसे पक्की लगन से करो । अनेक बाधाएँ भी आ सकती हैं, कष्ट भी सहन करने पड़ सकते हैइन सबका धैर्य से सामना करो। जो इनसे विचलित हो जाता है और कार्य को बीच मे छोड देता है— उसे असफलता और निराशा ही मिलती है । ब्राह्मण ने माता की इस सीख को गांठ बाँध लिया और चल पड़ा--रोजी की खोज मे ।
वह स्थान-स्थान पर नौकरी खोजता रहा । दोपहर होने को आयी, किन्तु उसे कही से कोई आशा नही बंधी । किन्तु माता की शिक्षा उसे स्मरण थो, अत. वह विचलित नही हुआ और नौकरी खोजने के कार्य मे लगा रहा। इसी समय उसे सड़क पर दूर कही शोर सुनायी दिया । उसने देखा कि आगे-आगे एक गधा रेंकता हुआ भागा चला आ रहा था और उसके पीछे उसका मालिक दौड़ रहा था । जब गधा ब्राह्मण से कुछ ही दूर रह गया तो गधे के मालिक ने उससे सहायता माँगी और गधे को पकड़ लेने को कहा। जब तक इस सारी बात को ब्राह्मण समझ पाया, तब तक गधा उसके समीप से होकर दो एक गज आगे निकल गया । विद्युत्वेग से ब्राह्मण पीछे मुड़ा और लपक कर उसने गधे को पकड़ लेना चाहा । इस प्रयास में उसे