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१४ : सुबुद्धि और राम-राम मित्र की कथा
अपनी अन्य सखियो की भांति शीघ्र ही रूपत्री का अनुमान भी मिथ्या सिद्ध हो गया। वाज की क्था का जो प्रभाव स्पथी चाहती थी, वह जम्बूकुमार पर रचमात्र मी नहीं हुआ था । कुमार ने रूपश्री की मान्यता का प्रतिवाद किया और गम्भीरता के साथ ही कहने लगे कि प्रिये रूपश्री । सुनो, तुमने बाज पक्षी की कथा मुझे सुनायी और तुमने इसकी दुर्दशा का कारण भी बताया कि दुर्वल प्राणी होकर भी उसने शेर के मुंह में मुंह डालने का अभ्यास बना लिया । तुम्हारे ही शब्दो मे मैं इस प्रकार तुम्हारी बात दुहराता हूँ कि उसने अपनी क्षमता से बाहर के काम मे हाथ डाला किन्तु नही... ....रूपश्री नहीं... ....वाज की दुरवस्था का मूल कारण यह नही था । तनिक ध्यानपूर्वक इस कथा पर विचार करने पर तुम भी इस निष्कर्ष पर पहुंच जाओगी कि बाज के मन मे विना परिश्रम मांस पा लेने की जो एक लिप्सा थी, उसी के दुष्परिणाम स्वरूप उसे मृत्यु का ग्रास होना पड़ा । लिप्साएँ क्याक्या अनर्थ नहीं कराती और कैसे-कैसे भयानक परिणाम तथा कष्ट नही देती । अव तनिक यह सोचो कि क्या अब भी उस लोभी वाज मे और मुझ मे कोई साम्य है ? स्पष्ट है कि मेरा जो नया व्रत है, उससे मै किसी लिप्सा को तुष्ट करने का उद्देश्य नही रखता। लोभ-मोह आदि कुप्रवृत्तियो से तो मैं पहले ही दूर हो गया हूँ। मैं