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१६२ | मुक्ति का अमर राही : जम्बूकुमार
माता-पिता आदि के कथन मे भी सत्य स्वीकार करना चाहिए । अन्यथा आपका यह जो अपनी धारणा के प्रति विशेष आग्रह का भाव है, वह सही निर्णय नही लेने देगा। हमारी धारणाओ मे औचित्य का अनुभव कोजिए और परिवार तथा परिवार के सुखो को, स्वजनों को इस निर्ममता के साथ त्याग कर मत जाइये। इनका भोग आज का सत्य है । सम्भव है कि विरक्ति
और सयम मे भविष्य के लिए कोई सत्य निहित हो । इस प्रकार दोनो धारणाओ मे सत्य की विद्यमानता का सकेत कर जयश्री ने अपना कथन समाप्त किया। समाप्ति के समय उसके मन मे अनुकूल प्रतिक्रिया की आशा के कारण एक उल्लास भर गया था ।