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२०२ / मुक्ति का अमर राहो : जम्बूकुमार उन्होंने अविलम्ब ही उन्हे दीक्षार्थ अपनी अनुमति प्रदान कर दी। वधुओ के हृदय-सरोज विकसित हो गये । परिजनो को प्रतिबोध
यह नवजागरण की रात्रि विभिन्न पक्षो के लिए विभिन्न प्रकार का स्वरूप रखती थी। जम्बूकुमार के लिए यह रात्रि थी-विरक्ति का शुभ मुहूर्त । श्रेष्ठि-कन्याओ के लिए यह रात्रि थी-जम्बूकुमार को ससागेन्मुख करने के उद्यम की रात्रि और इसके परिणाम मे पासा ही पलट गया था। स्वय वधुओ के मन मे ही वैराग्योदय हो गया था। कन्याओ और जम्बूकुमार के माता-पिता के लिए यह निर्णायक रात्रि थी। इसी रात्रि मे जम्बूकुमार के भावी जीवन का रूप निर्धारित होने वाला था, जिस पर उन अभिभावको की आशा-निराशा आधारित थी। नौ ही श्रेण्ठिदम्पति मे अधीरता थी। वे शीघ्र ही वधुओ द्वारा किये गये प्रयत्नो का परिणाम जान लेने को उत्सुक थे। उषा-पूर्व ही वधुओ के माता-पिता ऋषभदत्त के प्रासाद पर एकत्रित हो गये । धारिणीदेवी और ऋपभदत्त तो कभी से उत्कण्ठित थे ही। सभी आतुरता के साथ जम्बूकुमार के निर्णय की प्रतीक्षा करने लगे।
प्रातःकाल हो गया । नित्य की भांति ही जम्बूकुमार अपने माता-पिता को प्रणाम करने पहुंचे। उन्होंने देखा, तो चकित रह गये कि उनकी वधुओ के अभिभावक भी वहाँ विद्यमान थे। जम्बूकुमार को यह समझ लेने में विलम्ब भी नहीं हुआ कि इन महानुभावो के इस समय आगमन का क्या प्रयोजन हो सकता है ।