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उपसंहार
वधुओं में वैराग्य-भावना
तीन प्रहर रात्रि व्यतीत हो चुकी थी, चतुर्थांश ही शेष रह गया था। नववधुओ ने अपनी-अपनी क्षमतानुसार जम्बू कुमार को गृहस्थाश्रम मे प्रवृत्त करने के प्रयत्न कर लिए थे । किमी के प्रयत्न को सफलता नही मिल पायी। इसके विपरीत पत्नियो पर जम्बूकुमार के मार्मिक आख्यानो का ही प्रभाव अधिक हुआ । उनका भाव था भी यही कि इन नववधुओ को आन्तरिक जागरण से युक्त कर दें। परिणामत अब तो वे सज्ञान होकर अब तक के अपने प्रयत्नो के कारण लज्जित मी होने लगी। जम्बूकुमार ने अनेक युक्तियो से अपनी पत्नियो को ससार की क्षणभगुरता, भोगों की असारता, माया की प्रवचना, सुखो की भयावहता आदि से ऐसा परिचित करा दिया कि उनके समक्ष ये सब अपने वास्तविक रूप मे उद्घाटित हो गये । उनका मन भोग की सकीर्ण वीथियो से निकल कर मयम के राजमार्ग पर आ जाने को प्रेरित होने लगा। __ यह रात्रि हृदय-परिवर्तन की रात्रि थी। तस्कर प्रभव और उसके सहयोगियो का हृदय-परिर्वतन हो ही चुका था। अब वारी आठो वधुओ की थी। इनके मन में भी सद्य. अकुरित विरक्ति