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उपसंहार ! २१३
जम्बूकुमार एव अन्य दीक्षाथियो के दर्शन करने की आतुरता लिए लाखो नर-नारी राजगृह के मार्गों पर प्रतीक्षा कर रहे थे। इन दीक्षार्थियो की शोभा निहारकर वे धन्य हो उठते और इस शोभा-यात्रा में सम्मिलित होते जा रहे थे। अभिनिष्क्रमण की इस शोभा यात्रा का आकार इस प्रकार उत्तरोत्तर बढता चला जा रहा था। मगल-गीतो की गंज से सारा परिवेश पवित्र हो उठा था । बडा ही भव्य दृश्य निर्मित हो गया था।
इस विराट दीक्षा समारोह के अवलोकनार्थ समारोह स्थल पर चारो ओर से धर्म-प्रेमियो की विशाल जन समुदाय एकत्रित होने लगा । अभिनिष्क्रमण शोभा यात्रा भी समारोह स्थल पर पहुंची और अन्य ५२७ दीक्षाथियो के साथ जम्बूकुमार आर्य सुधर्मा स्वामी की सेवा मे उपस्थित हो गये । आर्यश्री के चरणो मे नत-मस्तक होकर जम्बूकुमार ने भाव-विभोर अवस्था मे विनय सहित निवेदन किया कि हे प्रभो । आप मेरा, मेरे स्वजनो और अन्य कल्याणार्थियो का उद्धार कीजिए। हम सब साधना-पथ के यात्री होने की उत्कट कामना के साथ आपके चरणो मे उपस्थित हुए हैं। कृपया हमे दीक्षा प्रदान कर आशीर्वाद दीजिए कि यह नवीन मंगलमय यात्रा हम अबाध रूप से सम्पन्न करें और हमे चिर-सुख का, मोक्ष का लक्ष्य प्राप्त हो । हमे महाव्रत धारण कराइए, प्रभो ! ___ आर्य सुधर्मा स्वामी ने सभी दीक्षार्थियो को दीक्षानुमति प्रदान की। दीक्षा पूर्व की अपेक्षित धार्मिक क्रियाएँ सम्पन्न होने लगी । अन्त में आर्यश्री ने सभी को भागवती दीक्षा प्रदान कर