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२१२ | मुक्ति का अमर राही : जम्बूकुमार
मगधनरेश ने तुरन्त ही घोपित कर दिया कि लोभवश प्रभव ने जितने अपराध किये हैं वे उसकी अज्ञानता के कारण हुए है। हम उसे और उसके सभी साथियो को क्षमादान देते हैं । अव ये श्रमण धर्म अगीकार करें और जीवन को सुमार्ग पर अग्रसर करे । अभिनिष्क्रमण दीक्षा-ग्रहण
यह प्रात काल नगर भर मे एक अद्भुत स्वर्णिम आलोक प्रसारित कर रहा था । आज सूर्य एक नवीन सन्देश लेकर नभो. मण्डल मे चढने लगा था। राजगृह मे आज जम्वूकुमार अन्य ५२७ व्यक्तियो के साथ दीक्षा ग्रहण कर रहे थे। नगर भर मे एक अद्भुत और मागल्यपूर्ण वातावरण था। जम्बूकुमार के अभिनिष्क्रमण का उत्सव आयोजित होने लगा। पिता श्रेष्ठि ऋषभदत्त एव माता धारिणीदेवी ने जम्बूकुमार की कोमल देह पर सुगन्धित उबटनो का लेप किया और उन्हे स्नान कराया। उन्हे आज पुन. मूल्यवान एव सुन्दर वस्त्रो तथा अलकारो से विभूषित किया गया। जम्बूद्वीप के अधिष्ठाता अनाधृत देव भी अभिनिष्क्रमणोत्सव मे सम्मिलित हुए और जम्बूकुमार को उन्होने आशीर्वाद प्रदान किया । धर्म की प्रेरणा से अद्भुत शान्ति सर्वत्र व्याप्त थी । मगल-वाद्यो से सारा आकाश ही जैसे गूंज उठा था। मागलिक मन्त्रोचार के साथ जम्बूकुमार अपने माता-पिता सहित विशिष्ट रूप से सजी हुई शिविका मे आरूढ़ हुए। एक हजार पुरुष इस शिविका को वहन कर रहे थे। श्रेष्ठि ऋषभदत्त के भवन से अभिनिष्क्रमण यात्रा के आरम्भ होते ही नगारे आदि वेग से बज उठे।