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२१० | मुक्ति का अमर राही : जम्बूकुमार
ही आयोजित किया जा रहा है तो उसके मन में भी दस महोत्सव में सम्मिलित होने की इच्छा उठी। जम्बूकुमार जैसे सज्ञान और प्रभावपूर्ण महात्मा के कारण मगध गणराज्य को जो गरिमा प्राप्त हुई थी, उसके कारण राजा कूणिक के मन में जम्बूकुमार के प्रति श्रद्धा का भाव उत्पन्न हुआ।। ___ मगधाधिपति श्रेष्ठि ऋपभदत्त ने निवास पर जव पहुंचे तो प्रभव अपने साथियो सहित जम्बूकुमार के समक्ष खड़ा था । नृपति ने दिव्यात्मा जम्बूकुमार को प्रणाम किया और हृदयस्थ श्रद्धाभाव को प्रकट किया । जम्बूकुमार का दर्शन कर उन्हे वडी प्रसन्नता हुई। उन्होने जम्बूकुमार को सम्बोधित कर कहा कि तुम्हारे त्याग एव सयम से हम बडे प्रभावित हुए है। भरे यौवन में तुमने कामनाओ, आकाक्षाओ, सामारिक विषयों को ठुकरा कर वैराग्थ व्रत धारण किया है-वह असाधारण कृत्य है । जम्बूकुमार तुमसे न केवल आत्म-कल्याण, अपितु, पर-कल्याण भी सधेगा। धन्य है तुम जैसे प्राणी । तुम्हे जन्म देकर मगध की धरती भी धन्य हो गयी है। तुमने यह सिद्ध कर दिया है कि मान-सम्मान, प्रतिष्ठा, धन-वैभव, अधिकार आदि किसी का भी वाधकरूप तपस्या के मार्ग मे प्रतिकूल प्रभाव नही डाल सकतायदि मनुष्य सयम की शक्ति अपने वश मे करले । हम तो मगधेश्वर होकर भी तुम्हारे सामने अतिक्षुद्र हो गये हैं । यदि हम तुम्हारी कोई सेवा कर सकें, तो ऐसा करके कृतकृत्य हो जायेगे। मेरे योग्य कोई सेवा हो, तो कहो।
पूर्ण तटस्थ भाव से ही जम्बूकुमार मगधनरेश के सारे कथन