Book Title: Mukti ka Amar Rahi Jambukumar
Author(s): Rajendramuni, Lakshman Bhatnagar
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 203
________________ ब्राह्मण-कन्या की कथा | १९१ सुम कपोल कल्पना भरा मिथ्या प्रसग सुना कर हमारा समय नष्ट कर रही हो। कन्या ने दृढता के साथ राजा का प्रतिवाद करते हुए कहा कि महाराज | आप मेरे कथन मे असत्य का अभास पा ___ रहे हैं, आखिर ऐसा क्यो ? " राजा- है ही यह मिथ्या और असत्य । मुझे इसमे तनिक भी सत्य प्रतीत नहीं होता। ____ कन्या-(अपने आन्तरिक रोष का दमन कर) आप तो नित्य ही कथाएँ सुनते रहते हैं। क्या वे भी सब की सब असत्य थी? राजा-नही वे असत्य नही थी, किन्तु तुम्हारी कथा निश्चयपूर्वक असत्य कही जा सकती है ? कन्या- इसका कारण ? राजा--(मौन) कन्या-आपका मौन इस तथ्य का प्रमाण है राजन् कि ___ आपके पास मेरी कथा को असत्य सिद्ध करने का कोई आधार नही है। अब तक की सुनी हुई कथाओ को जव आप प्रमाण के अभाव मे असत्य नही कह सकते तो मेरी कथा मे भी आपको सन्देह नही करना चाहिए । वे सत्य है, तो यह भी सत्य है । दोनो में अन्तर ही क्या है ? वे भी कथाएँ है और यह भी एक कथा है। कन्या के इस तर्क से हे स्वामी । जयश्री ने कहा कि राजा अवाक रह गया । उसे स्वीकार करना ही पड़ा कि ब्राह्मण-कन्या की कथा असत्य नही है। हे स्वामी | राजा के इस आचरण से शिक्षा लीजिए। आपको यह दुराग्रह नही पालना चाहिए कि जो कुछ आप सोचते हैं, वही सत्य है। आपको अपनी पत्नियो,

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