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दुस्साहसी बाज की कथा | १७५
सामर्थ्य से परे की कामना की थी । वह यह सोच ही नही पाया कि जो काम मैं कर रहा हूँ इसमे आने वाली समस्याओ और खतरो का सामना करने की शक्ति मुझ मे नही है । वह तो प्राप्त हो रहे सुख के लोभ में अन्धा ही हो गया था । हे स्वामी ! मैने यह कथा विशेषतः चुनकर सुनायी है, क्योंकि आपकी प्रवृत्तियो और वाज की प्रवृत्तियो मे मुझे समानता लगी है । आप भी बिना ही अपनी क्षमता को तौले चल पडे है - इस कठोर पथ पर 1 कच्चे सूत से कही पानी का भरा घडा कुए से बाहर खोचा जा सकता है ? घडा गिर पडेगा, प्यास ज्यो की त्यो रह जायगी और सूत टूट जायगा । सुनिये, मेरी विनय पर ध्यान दीजिए और आत्मरक्षा के लिए ही सही, किन्तु अपने इस गृहत्याग के संकल्प को विसर्जित कर दीजिए । अपने प्राणो से मत खेलिये, स्वामी !
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इस अनुनय के साथ जब रूपश्री ने अपना कथन समाप्त किया तो उसे भी विश्वास था कि अवश्य ही वह अपने प्रयत्न मे सफल हो जायगी और कुमार अपने नये मार्ग से पलट कर पारिवारिक जीवन के प्रति अनुरक्त हो जायेंगे । उसका यह विश्वास उसकी मुखमुद्रा पर स्पष्ट झलक आया था । इस बार जम्बूकुमार गम्भीर चिन्तन की मुद्रा मे नही थे अतः रूपश्री का विश्वास दृढतर होता जा रहा था ।