Book Title: Mukti ka Amar Rahi Jambukumar
Author(s): Rajendramuni, Lakshman Bhatnagar
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 199
________________ - कन्या की कथा | १८७ प्रकार धर्म और नीति के क्षेत्र में विभिन्न दृष्टिकोणो से वह परिचित हो जाना चाहता था । राजा ब्राह्मणो का बडा आदर किया करता था । कथावाचको का वह श्रद्धापूर्वक स्वागत करता था, भक्तिपूर्वक उनसे कथा श्रवण करता और पर्याप्त दान-दक्षिणा देकर उन्हे विदा करता था । श्रीपुर के ब्राह्मणो को इस हेतु क्रम-क्रम से निमन्त्रण मिलता रहता था । बड़ी उत्सुकता से ब्राह्मण जन अपनी बारी की प्रतीक्षा किया करते थे । श्रीपुर मे एक ब्राह्मण ऐसा भी था जो बेचारा निरक्षर था । कथावाचन तो क्या -कभी उसने कथा श्रवण भी नही किया था । जब उसे कथावाचन के लिए राजकीय निमन्त्रण मिला, तो वह घबरा गया । अपनी अक्षमता उसके समक्ष सबसे बडी बाधा थी । वह बडा चिन्तित था कि क्या किया जाय । राजाज्ञा की अवमानना भी नही की जा सकती और यदि वह आज्ञा का पालन करता है तो राजभवन मे जाकर वह सुनाएगा क्या | इस विषम परिस्थिति के कारण वह बडा दुखी हो रहा था। इस ब्राह्मण की पुत्री बड़ी ज्ञानवती थी । उसके पिता को चिन्ताग्रस्त देखकर इसका कारण पूछा और पिता ने सारी समस्या बता दी । पुत्री क्योकि बडी कुशाग्रबुद्धि की थी, उसने तुरन्त ही एक समाधान खोज निकाला । यह समाधान पिता को भी स्वीकार्य लगा और अब उसके चित्त मे सन्तोष और शान्ति थी । दूसरे दिन राजभवन मे नित्य की भाँति कथाश्रवण के लिए यथासमय समस्त प्रबन्ध कर लिया गया । राजा अपने आसन

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