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१५ : ब्राह्मण-कन्या की कथा :
जयश्री का प्रयत्न
जम्बूकुमार को गृहस्थ बनाये रखने की दिशा में उनकी सात नवविवाहिता पत्नियाँ तो अपने प्रयत्नों मे विफल हो गयी थी, किन्तु आठवी पत्नी जयश्री अब भी शेष थी। अपनी ७ सहेलियो की पराजय के कारण भी उसके चित्त पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं था । वह अपने अमन्द उत्साह के साथ कुमार को सम्बोधित करके कहने लगी कि कुमार | अब बारी मेरी है। मुझसे पार पाना कठिन होगा। मै अकेली ही अपनी ७ बहनो के पराजय का दुःख दूर कर देने को पर्याप्त हूँ।
अनुद्विग्नता के साथ जम्बूकुमार अधखुली आँखो से जयश्री की ओर निहारने लगे। कुछ पल मे वे बोले । तुम्हारे विजय के विश्वास के पीछे कही तुम अपने नाम का आधार ता नहीं मान रही हो ? और कूमार कुछ मुस्कराकर पुन. गम्भीर हा गये। वे बोले कि जयश्री ! स्वस्थ विचार-विमर्श तो सदा ही लाभकारी रहता है। मैं तुम्हारे कथन को भी समझने के लिए तत्पर हूँ। उसमे यदि ग्रहण करने योग्य कोई तत्त्व मिला तो उसे भी अवश्य ग्रहण करूंगा। कहो जयश्री | तुम्हारा क्या मन्तव्य है ?
कुमार । मै बडी देर से देख रही है कि आपको अपना विचार __ ही प्रिय लगता है। अपनी धारणा के प्रति आपके मन में