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१८४ | मुक्ति का अमर राही : जम्यूकुमार
मे स्वय को आबद्ध नही कर पाऊंगा। ये सम्बन्ध मेर लिए तभी तक बने रहेगे जब तक अन्य लोगो की स्वार्थपूर्ति की क्षमता मुझमे बनी रहेगी। फिर तो सभी सम्बन्ध स्वत. ही विच्छिन हो जायेंगे । फिर मैं ही आगे होकर उनसे मुक्त क्यो न हो जाऊ यही सोचकर मैंने सासारिकता और परिवार को त्यागकर आत्मकल्याण के मार्ग को अपनाने का निश्चय किया है। वस्तुतः इमी मे मेरा मगल निहित है । और मेरे लिए हो क्या, यह मार्ग तो सबके लिए मगलदायी है। इस मार्ग पर चलकर किसी को पछताना नही पड़ता । यह वह साधन है, जो मानव जीवन की श्रेष्ठतम उपलब्धि प्रदान करता है । रूपश्री ! तुमको भी अपने अज्ञान और 'त्रम से मुक्त हो जाना चाहिए । मानव जीवन बार-बार नहीं मिलता। इस वार मिला है तो इसका सदुपयोग कर लो, आत्म-कल्याण के उद्यम में इसे लगा दो। अन्य किसी जीवन मे यह अवसर नही मिल पाएगा। रूपश्री ] मैंने खूब सोच-समझकर इस मार्ग को अपनाया है और मैं तुम्हारा भी कल्याण चाहता हूँ। सोचकर देखलो" ' ' इस दिशा मै तुम्हारा कोई अहित नहीं होगा। ___ जम्बूकुमार तो इस प्रकार का आग्रह अव कर रहे थे, जबकि रूपश्री का हृदय कभी का अभिभूत हो चुका था। सुबुद्धि के प्रसग से सासारिक नाते-रिश्तो के प्रति उसके मन मे विकर्षण का भाव उदित हो गया था और वह भी उन्हे व्यर्थ मानने लगी थी, त्याज्य मानने लगी थी। जम्बूकुमार का कथन समाप्त होते-होते रूपश्री ने उनके चरणो मे अपना मस्तक टिका दिया ।