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१६८ | मुक्ति का अमर राही : जम्बूकुमार
जाना भी स्वाभाविक ही था, किन्तु सेवक तब भी सावधान नहीं हुआ। अत्यधिक कृषगात होकर एक दिन घोडी की मृत्यु ही हो गयो । राजकाज मे अति व्यस्त होने और विश्वासपात्र सेवक के नियुक्त हो जाने के कारण राजा घोडी की ओर ध्यान नहीं दे पाया था, किन्तु जब उसे उसकी मृत्यु का समाचार मिला तो उसे बडा शोक हुआ । राजा ने घोडी की मृत्यु के कारणो की खोज करायी तो तथ्य का पता चल गया कि वह सेवक घोडी को उसका पूरा दाना नही खिलाता था और उसमे से चुरा लिया करता था। राजा को उस सेवक पर बडा क्रोध आया और उसने उसे सेवाच्युत कर दिया।
अब सेवक के दुर्भाग्य के दिन आरम्भ हो गये थे। वह अपने इस जघन्य अपराध के लिए सारे क्षेत्र मे कुख्यात हो गया था । उसे कही अन्यत्र भी नौकरी नहीं मिली। वह भूख के मारे तड़पने लगा। अब वह अपनी करनी पर बहुत पछताता था, पर उससे स्थिति में कोई सुधार सम्भव नही था। उसने अपनी आत्मा की आवाज' को तनिक भी नही सुना, उसी का यह दुष्परिणाम था । एक दिन भयकर भूख से छटपटाते हुए उसने प्राण त्याग दिये ।
इस घोड़ी ने मर कर एक अन्य ग्राम मे नर्तकी के घर सुन्दर कन्या के रूप में जन्म लिया था और इस सेवक का पुनर्जन्म भी इसी ग्राम के एक ब्राह्मण परिवार मे हुआ। इस जन्म मे इसी का नाम चरक था । चरक जन्म से ही विकलाग था। उसके अग वक्र और असन्तुलित थे । उसे काम-काज करने में भी बडी कठि