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चरक की कथा | १६६
नाई होती थी । अपने पूर्वजन्म के दुष्कर्मों के परिणामस्वरूप ही उसे इस जन्म मे यह दण्ड मिला था। चरक भी बड़ा होता गया और नर्तकी की पुत्री भी युवती होकर अपार रूपवती हो गयी। वह स्वय भी कुशल नर्तकी बन गयी थी और दूर-दूर तक उसकी कला के कौशल का यश व्याप्त हो गया था । इस जन्म मे भी उसे इस नर्तकी का दासत्व धारण करना पडा। नर्तकी के घर मे वह सेवक होकर रहने लगा। उसे नर्तकी के कपड़े धोने पडते, झूठे बर्तन मलने पडते यहाँ तक कि उसकी जूतियाँ भी साफ करनी पडती। . चरक की अत्यन्त दुर्दशा थी, किन्तु दुष्प्रवृत्तियो के कुसस्कारो का प्रभाव अब भी उसमे शेष था । वह नीयत का बडा खोटा था। उसके मन मे सदा ही छल-कपट बसा रहता था । एक अर्द्धरात्रि को जब सर्वत्र अन्धकार और सन्नाटा छाया हुआ था उसकी दुरात्मा जाग रही थी। आज वह इस सम्पन्न नर्तकी के घर पर हाथ साफ करना चाहता था । वह उठा और नर्तकी के सारे मूल्यवान आभूषणो को एकत्रित कर उन्हे एक पोठली मे बाँध कर चल दिया । सयोग से प्रहरी की नजर पड़ गयी। उसके शोर से सब लोग जाग पडे और चरक रगे हाथो पकड़ा गया। इस बार भी उसकी खूब दुर्दशा हुई। मुंह काला कर, गधे पर बिठाकर उसे सारे गाँव मे घुमाया गया । जो कोई देखता-सुनता, उस पर थू-थू करता । वह सभी के लिए घृणा का पात्र हो गया था ।
कनकधी | मेरा विश्वास है कि तुम चरक की इस दुर्गति का कारण भली-भांति समझ गयी होगी। यह प्रसंग मेरे जीवन मे