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१२ : चरक की कथा : कनकश्री का गर्व-गलन
कनकधी का अनुमान सत्य ही था। वह जम्बूकुमार के विचारो को परिवर्तित करने मे विफल हो गयी थी। उसकी हताशा को देखकर कुमार बडो मदुलता के साथ कहने लगे कि कनकधी ! तुमने जो कथा कही है-वह मिथ्या नही है । एक मूल्यवान तथ्य का प्रतिपादन इससे होता है कि विचारहीनता के साथ हठपूर्वक जो आचरण किया जाता है उसके दुष्परिणाम ही होते हैं। किन्तु तनिक सोचकर देखो कि क्या यह 'कथा मेरे आचरण, सकल्प, लक्ष्य निर्धारण आदि से तनिक भी कोई ताल-मेल रखती है। मैं समझता हूं कि मेरी परिस्थितियो और तुम्हारी कथा के उस ब्राह्मण की परिस्थितियो मे समानता का अनुभव करना, तुम्हारा भ्रम है। मैंने गृहत्याग का निश्चय किया है, विरक्त होकर सयम स्वीकारने का व्रत लिया है, मोक्षार्थ साधना के लिए मैं कृतसकल्प हूँ-और इस सवका मैंने' विचारपूर्वक निर्णय लिया है। मैं न तो किसी परम्परा का अन्ध अनुसरण कर रहा हूँ और न ही मेरे द्वारा चुने हुए मार्ग से मैं अपरिचित हूँ । अत. गधे की पूंछ को दृढता के साथ पकड़े रखने से मेरी अवस्था सर्वथा भिन्न है। सासारिक सुखोपभोग को व्यर्थ और हानिकारक मानकर मैं उनका परित्याग कर रहा हूँ और मयम