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१३२ | मुक्ति का अमर राही : जम्बूकुमार वों से यही चाह रहा था कि वह धनाढ्य बन जाय और जब एक ही रात मे लक्षाधिपति हो जाने का अवसर उसके हाथ आ गया तो भला वह उसे यो ही जाने कैसे देता ।
तव के और अब के क्षेत्रकुटुम्बी मे बडा अन्तर था। अब क्षेत्रकुटुम्बी साधारण किसान नहीं रह गया था। अब तो वह वैभवशाली था, समृद्ध था। फिर भी अपने मूल कार्य को उसने नही छोडा था । खेती वह स्वय ही करता था। रात्रि को रखवाली का काम भी करता था। अनायास ही इस किसान की स्थिति में जो यह आश्चर्यजनक परिवर्तन आया, उसमे उस क्षेत्र के निवासियो को कुतूहल होता था । वे समझ नहीं पा रहे थे कि सहसा इतना धन क्षेत्रकुटुम्बी को कहाँ से हाथ लग गया। अधिकाशत तो यह चर्चा का ही विषय रहा करता था, किन्तु हे कुमार | कोईकोई प्रवल जिज्ञासु उससे इस विषय मे प्रश्न भी कर लिया करता था। प्राय ऐसे अवसरो पर क्षेत्रकुटुम्बी का एक ही आशय का उत्तर होता था कि भगवान की कृपा से ही मुझे यह सब प्राप्त हो सका है । अधिक विवेचन-विश्लेषण वह नही करता । किन्तु लोगो को उमके इस उत्तर पर विश्वास नही होता, क्योकि सव लोग जानते थे कि क्षेत्रकुटुम्बी अपनी गृहस्थी और खेती-बाडी के माया-मोह मे ही लगा रहता है। इसने ऐसी भक्ति कब कर ली कि भगवान इस पर इतने प्रसन्न हो जायें। अतक्षेत्रकुटुम्बी को मन्देह की दृष्टि से ही देखा जाता था। स्वय उसे भी इसका पूरा आमाम था कि उसके कथन को सहज ही स्वीकारा नही जा सकेगा । अन लोगो की धारणा को झुठलाने के लिए और उनमे