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प्यासे बन्दर को कथा | १३९
कर दिया था कि भविष्य में वह कभी इस वन मे प्रवेश करने का साहस न कर सके । वन मे पुन. शान्ति का साम्राज्य हो गया। वानर-जीवन मे पुन. सुखमयता लौट आई।
वह बलवान वानर भी कुछ समय इधर-उधर भटकता रहा और अन्त मे एक अन्य वन्य खण्ड मे उसने आश्रय ले लिया । इस नये वन मे भी वनस्पति का वैसे अभाव नही था, किन्तु पहले वाले वन की तुलना मे कुछ भी नहीं था । जैसे-तैसे इस वानर को अब इस नये वन मे ही जीवन विताना था। वह अपनी पराजय-जन्य वेदना को विस्मृत कर नवीन उद्योग मे व्यस्त रहने लगा। इस वन मे उसे अन्य कोई प्राणी दृष्टिगत नही हुआ । सारे वन पर मात्र उसी का अधिकार है-~-इस भावना से उसमे गर्व की अद्भुत अनुभूति जागी। इच्छानुसार फल-फूलो का सेवन कर वह अघा गया । तब उसे प्यास लगी और वह जल की खोज में निकला । उसे यह जानकर बडा आश्चर्य होने लगा कि इस हरे-भरे वन मे आस-पास कही जलाशय आदि नही है। दूर-दूर तक उसने खोज लिया, किन्तु उसे निराशा ही हाथ लगी। अब उसका कण्ठ प्यास के मारे सूखने लगा। तृषा असहनीय हो जाने के कारण वह थका होने पर भी जल की खोज करने लगा, किन्तु उस वन मे कही होता तभी तो उसे जल मिल पाता । सारी दौड-धूप व्यर्थ हो गयी।
तेज धूप के कारण उस वानर का कष्ट और अधिक बढ़ गया। उसके प्राण ही कण्ठ मे आ गये थे । वह बुरी तरह हाँफने